चरित्र मनुष्य को मिला हुआ महान वरदान
चेन्नईPublished: Sep 24, 2018 10:54:13 am
– संतानों ने माता-पिता का पूजन कर मांगी क्षमा उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि अनुभूति और अहसास को चरित्र कहते हैं। क्रिया, व्यवहार और आचार से पृथक होता है। कई बार अच्छी क्रिया करने के बाद भी समाधान नहीं होता। आचरण करने के बाद भी उसका फल नहीं मिलता क्योंकि जैसा चरित्र होता है वैसा ही फल मिलता है।
चरित्र मनुष्य को मिला हुआ महान वरदान
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि अनुभूति और अहसास को चरित्र कहते हैं। क्रिया, व्यवहार और आचार से पृथक होता है। कई बार अच्छी क्रिया करने के बाद भी समाधान नहीं होता। आचरण करने के बाद भी उसका फल नहीं मिलता क्योंकि जैसा चरित्र होता है वैसा ही फल मिलता है। क्रिया, आचार और व्यवहार तो सिखाया जा सकता है लेकिन अहसास और चरित्र नहीं। पक्षी भी रटारटाया बोल सकते हैं, लेकिन वे उनके चरित्र और भावना में नहीं आते। चरित्र अच्छा होने पर क्रिया, आचार और व्यवहार अच्छा होगा। हम बाहरी रूप से धर्म करते हैं लेकिन उसे अपनी भावनाओं में नहीं उतार पाते जिससे वह आपका चरित्र नहीं बन पाता।
चरित्र हमारे अन्तर से जन्मता है इसे थोपा नहीं जा सकता और जो अन्दर से जन्मता है उसमें ब्रेक नहीं होता। अनुशासन को आप कभी भी भंग कर सकते हो लेकिन अपने चरित्र के विपरीत आप कभी नहीं जा सकते। वह चरित्र ही आपको तिराता है। अनुभूति करना ही हमारी आत्मा का गुण है और यह मनुष्य गति को मिला हुआ वरदान है। जहां चेतना है वहां अनुभूति है, बिना अनुभूति के हम जो भी करते हैं वह जड़ क्रिया है।
जहां तन है वहां अपने मन को रखें और जहां मन है वहां तन को ले जाओ। जहां क्रिया, वहां भाव आ जाए तो चरित्र में आनन्द और अनूभूति होती है। जब तपस्या में डूबता जाता है और भारी नहीं लगती। बिना अनुभूति जो भी किया जाता है वह चरित्र नहीं, केवल ड्रामा होता है।
मातृ-पितृ पूजन का विशेष कार्यक्रम
उपाध्याय प्रवर ने नवकार महामंत्र के उच्चारण के साथ मातृ-पितृ पूजन के विशेष कार्यक्रम में कहा कि भगवान महावीर वही बन सकता है जिसे गर्भ में रहते मां को पीड़ा न हो इसके लिए अपनी प्राकृतिक क्रिया को रोक दें। जब गर्भ में रहते हुए बच्चा हिलता डुलता है तो मां को कष्ट मिलता है, लेकिन महावीर को आश्चर्य होता है कि जब वे कष्ट दे रहे हैं तो उनकी मां हंसती है और जब नहीं दे रहे तो वे रोने लगती है। ऐसी महावीर की मां त्रिशला ही हो सकती है। महावीर और उनकी मां से प्रेरणा ग्रहण करने वाले ही महावीर के जन्मदाता बनते हैं। जो अपने स्वयं के बच्चों से परेशान होते हैं वे जिंदगीभर परेशान ही रहते हैं। मां-बाप और संतानें एक-दूसरे की भावनाओं को समझें और अनुभव करें। जब बच्चे अनजाने में कष्ट दें तो मां-बाप को उसमें भी खुश रहना चाहिए और संतानें भी ऐसा आचरण करें कि अपने माता-पिता तनिक भी कष्ट न हो। कार्यक्रम में आए हुए बच्चों ने अपने माता-पिता के चरण धोकर वंदना की और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी तथा माता-पिता ने भी अपने बच्चों के प्रति हमेशा देवरूप क्षमा करने का संकल्प लिया।