दस दिन में 25 प्रतिशत राजस्व प्राप्त
बुकसेलर्स एंड पब्लिशर्स एसोसिएशन ऑफ साउथ इंडिया (बापसी ) के अध्यक्ष एस. वैरावन ने पुस्तक मेले में भीड़ सामान्य है, लेकिन किताबों में लोगों की रुचि बढ़ी है। हमनें 20 करोड़ का लक्ष्य रखा था, जिसमें उन्होंने 25 प्रतिशत हासिल कर लिया है। वर्ष 2003 में 22 स्टॉल से शुरू पुस्तक मेले से 6 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था। इसके बाद बापसी ने वर्ष 2013 में 12 करोड का राजस्व जुटाया।
कोरोना महामारी से पहले वर्ष 2020 में राजस्व 20 करोड छू गया था। वहीं कोरोना महामारी के दौरान भी बापसी ने 12 करोड रुपए की किताबें बेची। वैरावन बताते हैं, पहले अगर मेला देखने 400 लोग आते थे तो उसमें से 20 लोग ही पुस्तकें खरीदते थे, जबकि आज यह संख्या एक सौ से अधिक है। इसके अलावा आज मेले में आने वाले पाठक एक बजट भी बनाकर चलते हैं।
हर वर्ग की पसंद अलग
एक लेखक तमिलमगन ने बताया कि तेजी से बढ़ते डिजिटल युग में आज भी प्रिंट का विशेष महत्व है। आज न केवल लोग पुस्तकें पढऩा चाह रहे हैं, बल्कि पुस्तकें खरीदना भी पसंद करने लगे हैं। पुस्तक मेले में जितनी भीड़ आ रही है, वह देखते ही बनती है।
यह बात अलग है कि आज का पाठक छोटी कहानियां या यूं कहें कि लघुकथा, सामयिक या चर्चित विषयों पर आधारित उपन्यास, शेरो शायरी, रोमांटिक या कटाक्ष करने वाली कविताएं, चर्चित हस्तियों से जुड़े विषयों सहित जरूरत के मुताबिक पुस्तकें पढऩा पसंद करता है। मसलन, योग, प्रबंधन, पाक कला, हास्य व्यंग्य, बच्चों की देखभाल, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, फिल्मों, व्यक्तित्व विकास धार्मिक पुस्तकों के प्रति भी पाठकों का रूझान बढ़ा है।
उथल-पुथल के दौर में किताबों का संसार
बापसी के कार्यकारी समिति सदस्य ए. लोकनाथन भी इस सच्चाई से इंकार नहीं करते। वह कहते हैं, पुस्तकों की बिक्री भी बढ़ी है और पठन-पाठन संस्कृति भी। उन्हें डर था कि किताबें फैशन के बाहर हो गई है लेकिन पिछले 45 साल से पुस्तक मेले की सफलता इस बात का प्रमाण है कि अभी भी किताबों के दिवाने है। जहां तक पसंद का सवाल है तो वह समयानुसार बदलती ही रहती है। सुखद यह है कि पठन संस्कृति का विकास हो रहा है और लोग वापस इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की चकाचौंध से निकलकर पढऩे का समय निकाल रहे हैं।