सभी को पता है कि एक जीवंत लोकतंत्र को रचनात्मक सोच और कलात्मक स्वतंत्रता के लिए पर्याप्त स्थान प्रदान किया जाना चाहिए। सिनेमैटोग्राफी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन केंद्र सरकार की पुनरीक्षण शक्तियों को बहाल करके इसे प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है, जबकि दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने यह बात कही। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित बिल का राज्य के राजनीतिक दल के नेताओं और अभिनेताओं ने सख्ती से विरोध कर राज्य सरकार से केंद्र पर बिल को वापस लेने का दबाव बनाने का आग्रह किया था।
इससे पहले सोमवार को अभिनेता कार्ति ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था। जिसके बाद स्टालिन ने कहा था कि राज्य सरकारों के अधिकार को छीनने के उद्देश्य से इस विधेयक को तैयार किया गया है। अगर कोई फिल्म केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा सार्वजनिक देखने के लिए प्रमाणित किया जाता है तो यह राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती है और इसे राज्यों पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए, क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। लेकिन अब केंद्र सरकार प्रस्तावित अधिनियम द्वारा सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ जाने की कोशिश कर रही है। राज्य सरकारों और सीबीएफसी की शक्तियों का उल्लंघन भी किया जा रहा है।
-फिल्म बनाने को लेकर शर्तें थोपना है अनुचित
उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म बिरादरी की रचनात्मक सोच पर अंकुश लगाना और उन पर फिल्में कैसे बनाई जानी है, को लेकर शर्तें थोपना पूरी तरह से अनुचित है और संविधान के आदर्शों के विपरीत है। विचार की स्वतंत्रता के अधिकार को छीनने से हमारा लोकतंत्र कमजोर होगा। ऐसी परिस्थिति में केंद्र को प्रस्तावित बिल को वापस लेना चाहिए।