उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा ईवीएम पर लगाए गए आरोपों को करते हुए कहा कि कैप्टन ने वर्ष २००२ में ईवीएम के टैम्परिंग का आरोप लगाया जिसका परीक्षण हाईकोर्ट में किया गया जिसके बाद वे आरोपों को साबित कर पाने में नाकाम रहे और शांत बैठ गए।
एक देश-एक चुनाव के मोदी सरकार के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा इस बारे में वर्ष १९५१-५२, १९५७, १९६२ और १९६७ में भी समीक्षा कराई गई लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। ऐसा करने के लिए संविधान में बदलाव की जरूरत है लेकिन क्या हम ऐसा करेंगे इस बारे में सोचने की जरूरत है। इस मौके पर एसआरएम ग्रुप के संस्थापक डा. टी.आर. पारिवेंदर ने कहा वर्ष १९८२ में एक प्रत्याशी ने केरल हाईकोर्ट में ईवीएम मशीन को चुनौती दी थी पर कोर्ट उस पर सहमत नहीं हुई।
वहीं वर्ष २००९ में भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने अपने द्वारा लिखी गई पुस्तक में पार्टी की हार का जिम्मेदार ईवीएम को बताया जबकि डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने अमरीका के एक विशेषज्ञ का हवाला देते हुए कहा कि ईवीएम को टैम्पर नहीं किया जा सकता। हालांकि ईवीएम के साथ अब वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स भी लगा हुआ रहता है, इसके बावजूद इस मुद्दे पर विवाद समाप्त नहीं हुआ है।