चेन्नई

क्षमापना से एक कदम आगे प्रेम की ओर बढ़ें

– कल से आयंबिल ओली की आराधना

चेन्नईOct 15, 2018 / 01:01 pm

Ritesh Ranjan

क्षमापना से एक कदम आगे प्रेम की ओर बढ़ें

चेन्नई. पुरुषावाक्कम के श्री एमकेएम जैन मेमोरियल में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने श्रेणिक चरित्र का समापन करते हुए बताया कि श्रेणिक की भावना धर्म करने की थी वैसा आचरण व संयम स्वयं नहीं कर पाया लेकिन जो लोग भौतिक कारणों से धर्म नहीं कर पाए उनके लिए अपनी सारी समृद्धि समर्पित कर दी और तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया। ऐसे समय में श्रेणिक ने परमात्मा के सान्निध्य में तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया जब उसका नरक का बंध हो चुका था। लेकिन अपने अंतिम समय में श्रेणिक ने अच्छे भावों को न समझ पाने की नकारात्मकता के कारण कृष्ण लेश्या का बंध किया। श्रेणिक आने वाली चौबीसी में पद्मनाभ बनेगा। श्रेणिक अपने मन में भगवान महावीर को स्वयं के हृदय में बसा लिया था और पूरी तरह तल्लीन हो गया। इसी के कारण वे पूरी तरह भगवान महावीर की प्रतिलिपी होंगे।
कई बार हम ये नहीं समझ पाते हैं कि हमारी अच्छी भावना होने के कारण भी उसे कोई स्वीकार कर पाएगा कि नहीं, इसकी कोई संभावना नहीं है। किसी का भला करने जाते हैं फिर भी उसका बुरा हो जाता है। मन, वचन, काया, भावना सही है फिर भी गलत हो गया। हम कहते हैं कि इस जन्म में कुछ गलत नहीं किया फिर भी कष्ट प्राप्त हो रहा है। यह सब कहीं न कहीं पूर्व जन्मों का ही फल होता है। इसीलिए परमात्मा ने साधुओं को वचनबद्धता देने का मना किया है। जैसा समय हो वैसा हो जाएगा, ऐसी धारणा ही होनी चाहिए।
उपाध्यायय प्रवर ने कहा कि अपने रिश्तों को सही तरीके से देखें और उनमें निरंतर क्षमापना की आराधना करते रहें, इससे आपकी सारी आराधना के फलित होने की पूरी संभावना है। इसलिए सबसे पहले क्षमापना की आराधना करते रहें। जीवन में बहुत बार कड़वे अनुभव आते हैं। कई बार किसी से मन में द्वेष और शत्रुता के अनुभव याद आते रहते हैं। उस समय हमारा मन एकदम उद्वेलित हो जाता है। हम क्षमापना करने के बाद भी उन्हें अपने मन से निकाल नहीं पाते हैं। ऐसे समय में अपना समय बर्बाद न करें और उस व्यक्ति के प्रति एक ही भावना रखें कि आप उसे प्रेम करें और वह भी आपको प्रेम करे। आप पाएंगे की आपके मन की भावनाओं का चक्र रूक जाएगा। क्षमा से एक कदम आगे प्रेम की ओर बढऩे से आपको शांति प्राप्त होगी, कांटों में भी फूल खिल जाएंगे।
तीर्थेशऋषि ने कहा कि जो देने के योग्य है उसी से कुछ प्राप्त करना चाहिए। जो देने के बाद पुन: प्राप्त करे या उसका गलत फायदा उठाए ऐसे लोगों से कभी भी सहायता प्राप्त न करें। जो देने समर्थ है उसी से मांगना चाहिए। हम सभी अपूर्ण हैं और सबको देने वाले तीर्थंकर प्रभु ही एकमात्र परिपूर्ण हैं, उनसे मांगें, न कि अपूर्ण से। जो परमात्मा से सीधा जुड़ा रहता है, वह तिर जाता है। वे सर्वोच्च शक्ति हैं जो बिना मांगे भी आशीर्वाद बरसाते हैं, तो मांगने पर तो उम्मीद से ज्यादा प्रदान करनेवाले हैं।
मध्यान्ह में २ से ४ बजे तक अष्टमंगल शिविर संपन्न हुआ। १६ अक्टूबर से आयंबिल ओली शुरू होगी। १८ अक्टूबर को प्रात: ८ बजे सी.यू.शाह भवन, पुरुषावाक्कम से उत्तराध्ययन का भव्य वरघोड़ा निकाला जाएगा। १९ अक्टूबर से उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन प्रात: ८ से १० बजे तक होगा।

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