त्यौहार मनाया लेकिन नहीं मिल सके अपनों से
विजयवाड़ा की निवासी प्रीती इस साल परीक्षाएं जल्द खत्म होने के कारण खुश थी कि वो उगादी पर नानी के घर रहेगी और त्यौहार के मजे लेगी। लेकिन परिवहन सेवा के बंद होने के चलते वो नहीं जा सकी। यूं तो त्यौहार मनाया लेकिन वो खुशी नहीं रही।
परिवार साथ है पर न हो सका मां का श्रृंगार
इन नववर्ष के साथ ही चैत्र नवरात्र भी शुरु होते है । नवरात्र का व्रत करने वाली ज्योति गोयल हर साल होली के बाद साहूकारपेट से एक साथ गणगौर और नवरात्र के लिए पूजन सामग्री लेकर आती थी। इस साल कोरोना के कारण साहूकारपेट नहीं जा सकी और अब लॉकडाउन हो गया। ज्योति ने कहा इस नवरात्र पर देवी के लिए आसपास की दुकानों में सुपारी ,कलावा भी नहीं मिला। व्रत तो किया है लेकिन सेंधा नमक न होने से बिना नमक का ही व्रत हो गया। सब घर में साथ में हैं तो मजा तो आ रहा है लकिन माता का सिंगार नहीं कर पाने का दुख साल रहा है।
पूरा न हो सका गणगौर उजमन का चाव
नवरात्र के साथ ही इस सप्ताह होता है गणगौर तीज का पर्व। होली के बाद शुरु होने वाला गणगौर का पर्व चैत्र तृतीया को समाप्त होता है। गणगौर पर बेटियों के घर सिंजारा भेजा जाता है। अब लॉकडाउन ने लोगो को घर में ही कैद कर दिया है। मारवाड़ी समाज में गणगौर का पर्व खास होता है। तीज वाले दिन नई ब्याहता गणगौर का उजमन करती है। जिसके लिए होली के बाद से सोलह दिन तक घर पर ईसर पार्वती के विराजित कर उनकी पूजा की जाती है। चैत्र तृतीया को गणगौर को विदा किया जाता है। उस दिन ही उजमन किया जाता है। इसके लिए सुहागनों को निमंत्रित कर उने साथ गणगौर पूजी जाती है और सुहागनों को घेवर और सुहाग सामग्री भेंट दी जाती है। ये महानगर में रहने वाली प्रवासी राजस्थानी महिलाओं के लिए मेलजोल का एक अवसर होता है। हर साल दूसरी सहेलियों के घर जा कर गणगौर पूजने वाली चंदा रुईयां ने इस साल अपनी बहू के गणगौर उजमन की उत्साह के साथ सारी तैयारियां कर रखी थी। होली के बाद से ही रोज गणगौर के गीत के साथ ही सास बहू की शाम ढल रही थी। दोनो ही 27 मार्च की तैयारियों में लगे थे। खाना बनाने के लिए महाराज की बुकिं ग और मेंहदी वाली की बुकिंग भी हो गई थी। लेकिन कोरोना के भय के कारण पहले तो कार्यक्रमों में कटौती की अब लॉकडाउन की घोषणा के चलते महाराज और मेंहदी वाली ने भी मना कर दिया। अपार्टमेंट में रहने वाली सुहागनों को एक बार प्रसाद दिया जा सकेगा पर दूसरे एरिया में रहने वाली सखियों को कैसे पहुचाया जाए, ये सवाल उठ रहा है। चंदा ने उदासी भरे स्वर में कहा कि सारी प्लानिंग धरी रह गई। गणगौर तो सखियों के साथ का दिन होता है। इस बीमारी ने तो सारा चाव ही खत्म कर दिया।