चेन्नई. मडिपक्कम में सड़क के किनारे एक छोटी सी टिफिन की दुकान करने वाले शंकरन लॉकडाउन से पहले हर महीने 15 हजार रुपए कमाते थे, जो चार सदस्यों के परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त था। लेकिन लॉकडाउन के बाद उनकी हालत खस्ता है। आय का कोई अन्य स्रोत नहीं होने के कारण शंकरन ने पिछले सप्ताह से सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। लेकिन वह भी उसके लिए लाभ का सौदा नहीं रहा। पहले बचत से चला लिया, अब वह भी खत्म शंकरन कहते हैं, मैंने अपना सारा जीवन नरम इडली बनाने में बिताया है और मुझे सब्जी के व्यवसाय के बारे में कुछ नहीं पता था। हताशा में मैंने अपनी किस्मत आजमाई लेकिन मुझे नुकसान हो रहा है। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान मुझे भारी नुकसान हुआ था और मैं अपनी बचत पर बच पाया था। लेकिन इस साल के लॉकडाउन के लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं था। मुझे नहीं पता कि मैं अपने परिवार को कैसे खिलाऊंगा।उन्होंने कहा कि इस साल जनवरी से उनका कारोबार फल-फूल रहा था और ग्राहक उनकी फूली हुई इडली का स्वाद ले रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद उनकी सारी खुशियां काफूर हो गई। ऐसा ही हाल शहर के सैकड़ों स्ट्रीट फूड वेंडरों का है। कइय़ों ने बदल लिया पेशा कोविड के प्रकोप के साथ बिक्री में गिरावट आई थी और लॉकडाउन लागू होने के साथ उनकी दुकानें खोलने को लेकर अनिश्चितता है। कोई राहत नहीं मिलने से कई लोगों ने अपना पेशा बदल लिया है। युवा डिलीवरी बॉय बन गए हैं, जबकि कई छोटे व्यवसायों में हाथ आजमा रहे हैं। एक अन्य विक्रेता कृष्णन वी ने कहा, बड़े होटल और रेस्तरां स्विगी और ज़ोमैटो के माध्यम से चलाने का प्रबंधन कर सकते हैं लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते। हम तकनीकी-साक्षर नहीं हैं, और हमारे पास इतने संसाधन भी नहीं हैं। ……………