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धर्म के आधार पर निर्णय करने वाला मोक्षगामी

locationचेन्नईPublished: Sep 18, 2018 12:53:18 pm

Submitted by:

Santosh Tiwari

पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने जैनोलॉजी प्रेक्टिकल लाइफ कार्यक्रम में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा जीव की चार प्रॉपर्टी है- ज्ञान, दर्शन, चरित्र, वीर्य या शक्ति।

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धर्म के आधार पर निर्णय करने वाला मोक्षगामी

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने जैनोलॉजी प्रेक्टिकल लाइफ कार्यक्रम में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा जीव की चार प्रॉपर्टी है- ज्ञान, दर्शन, चरित्र, वीर्य या शक्ति। दर्शन की दो प्रॉपर्टी है नफरत और प्रेम। किसी के द्वारा किया गया व्यवहार आपकी बुद्धि में आने के बाद भावनाओं में परिवर्तित हो जाता है और उसके बाद वह विचार आपकी ऊर्जा में सम्मिलित हो अच्छा या बुरा प्रभाव डालती है व रिश्ते प्रभावित करती है। भावनाओं के स्तर पर तो इसको प्रभावित किया जा सकता है लेकिन जब यह आपकी ऊर्जा में सम्मिलित हो जाए तो उसे बाहर निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है।
अपनी इस नकारात्मक ऊर्जा को बदलने के लिए ज्ञान और सूचनाओं की जरूरत नहीं बल्कि भक्ति और ध्यान में से किसी एक में आपको पूर्णत: डूबना पड़ेगा। आप स्वीकार कर लें कि स्वयं और स्वयं की आत्मा से प्रेम करना है, तो आप बदल सकते हैं। इसके लिए आपको मूल बीज स्वरूप अपनी ऊर्जा को बदलना होगा, यही परमात्मा का कहना है।
उन्होंने बताया कि त्रसकाय जीवों की तीन श्रेणियां हैं-स्थावर जीव जिनमें निर्णय की क्षमता नहीं होती, वे मात्र इनका अनुभव करते हैं। सुख-दु:ख के आधार पर निर्णय लेनेवाले जीव तथा धर्मकाय जीव जो पाप-पुण्य, आस्रव-संवर के आधार पर निर्णय करते हैं। जब त्रसकाय तीसरी श्रेणी के आधार पर निर्णय करते हैं तो इनका मोक्ष का मार्ग शुरू हो जाता है। यह संभावनाएं त्रसकाय जीव में ही होती है। ये तपस्या, क्षमा, दान, संयम, सेवा में धर्म है ऐसा समझकर करते हैं, उनमें सुख है या दु:ख है यह नहीं देखा जाता। जबकि सुख-दु:ख पर निर्णय लेने वाले जीवों को अशाता, अशांति, महाभय और दु:ख की अनुभूति होती ही रहती है, ये जीव परेशान होते ही रहते हैं।
हिंसा के तीन कारण हैं- जो पहले कर चुका उसके बदले की हिंसा, जो हिंसा कर रहा है उसके प्रति हिंसा और जो भविष्य में करेगा इसके भय से उसके प्रति हिंसा करना। इन तीनों कालों की हिंसा जो करता है, उसे इन्हीं तीनों कालों की हिंसा को स्वयं भी भुगतना पड़ता है।
मुनि तीर्थेशऋषि ने कहा जो वस्तु ज्यादा कीमती होती है उसकी सार संभाल ज्यादा करते हैं उसी प्रकार अपने सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जन्म को उज्ज्वल बनाएं, इसका सदुपयोग करें। पता नहीं लक्ष्यपूर्णि से पहले ही कब आयुष्य पूर्ण हो जाए और यह कांच रूपी सांस की डोरी एक बार टूट जाए तो दोबारा जुडऩा असंभव है। मनुष्य गति ही ऐसी है जिसमें मोक्ष को प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी अन्य गति में स्वयं की इच्छानुसार मोक्ष के लिए प्रयास नहीं कर सकते।
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