script‘धरतीपुत्री’ सरस्वती खेती से जगा रही अलख | 'Dhartiputri' arises from Saraswati farming | Patrika News

‘धरतीपुत्री’ सरस्वती खेती से जगा रही अलख

locationचेन्नईPublished: Nov 19, 2018 11:13:54 pm

खेतों में पसीना बहने में महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं है। कृष्णगिरि जिले की महिला किसान सरस्वती उन महिलाओं में से एक हैं जो कृषि भूमि से न केवल अपना परिवार चला रही है बल्कि गांव की महिलाओं के उत्थान में भी सक्रिय है। कृषि भूमि के वैकल्पिक उपयोग और आधुनिक कृषि को उन्होंने अपनी सफलता का माध्यम बनाया। इसी वजह से केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले महिला किसान अवार्ड (किसान रत्न) २०१८ के लिए उन्हें नामित किया गया है।

'Dhartiputri' arises from Saraswati farming

‘Dhartiputri’ arises from Saraswati farming

चेन्नई।खेतों में पसीना बहने में महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं है। कृष्णगिरि जिले की महिला किसान सरस्वती उन महिलाओं में से एक हैं जो कृषि भूमि से न केवल अपना परिवार चला रही है बल्कि गांव की महिलाओं के उत्थान में भी सक्रिय है। कृषि भूमि के वैकल्पिक उपयोग और आधुनिक कृषि को उन्होंने अपनी सफलता का माध्यम बनाया। इसी वजह से केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले महिला किसान अवार्ड (किसान रत्न) २०१८ के लिए उन्हें नामित किया गया है।

पारिवारिक जिम्मेदारी

कृष्णगिरि जिले के महाराजाकड़ै गांव में बसी सरस्वती ग्रामीणों में नवोन्मेषी महिला किसान के रूप में लोकप्रिय है। कहने को उसके पास ६ एकड़ ही जमीन है जो सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर है। किसान परिवार की सरस्वती एक बहन और दो भाइयों के साथ जन्मी। वह ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाईं और उनका विवाह 1981 में के. मुन्नुसामी के साथ हुआ। इस दम्पती के तीन पुत्रियां व एक पुत्र हैं। पति की नासाज रहने वाली सेहत की वजह से परिवार की जिम्मेदारी सरस्वती पर आ गई। लिहाजा उन्हें खेतों में उतरना पड़ा।

ंजमीन का वैकल्पिक उपयोग

सफल महिला किसान बनने के लिए सरस्वती ने आधुनिक कृषि की नई प्रौद्योगिकियों का सफलतम और फायदेमंद इस्तेमाल किया। अनाज के अलावा सहायक उत्पाद विकसित किए और उनकी वहनीयता और प्रभावी विपणन के माध्यम से कृषि आय में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की। वे गांव में अब एक आत्मनिर्भर महिला हैं। वे धान के अलावा केला, शहतूत, आम, नारियल और गायों के लिए चारा उगाती हैं। बारिश आधारित फसलों में वह आम्र पौधरोपण करती है और मौसम के अनुरूप बाजरे की खेती करती हैं।

सरस्वती ने सालाना 400-500 किलो कूकन का उत्पादन भी करती है। उनके पास 1 हजार मुर्गियां, चार गायें व चार बकरियां हैं जिनसे उनको अतिरिक्त आय होती है। चाहे खेत हो अथवा घर दोनों जगहों का अधिकांश कार्य सरस्वती स्वयं ही करती हैं। जब कभी उनको जरूरत होती हैं वे कृषि श्रमिकों की मदद लेती हैं। सरस्वती गांव में आटा चक्की भी चलाती हैं और कुटीर उद्योग के रूप में आम की पिसाई, अचार बनाना और पाउडर निर्माण का कार्य करती हैं।

सामाजिक योगदान

सरस्वती को आधुनिक कृषि और मूल्य संवद्र्धित उत्पादों की तकनीक सिखाने में कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) कृष्णगिरि की मुख्य भूमिका रही। वे बताती हैं कि केवीके के प्रशिक्षण और परामर्श ने उनकी जिन्दगी बदल दी और खेती को नए तरीके से करने का उपाय बताया। अब वह गांव के अन्य किसानों को आधुनिक तकनीकों से अवगत कराने में जुटी हैं। उन्होंने अपने गांव में 20 सदस्यों वाले ‘आत्म किसान उत्पादक समूह’ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वह इस समूह की पहली अध्यक्ष भी बनीं। उन्होंने नाबार्ड की मदद से आयोजित सिलाई प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से २० महिलाओं को रोजगार दिलाया। परिवार और समाज में सरस्वती की भूमिका को ध्यान में रखते हुए ही उनको कृषि विज्ञान केंद्र, कृष्णगिरि द्वारा महिला किसान अवार्ड (किसान रत्न) २०१८ के लिए नामित किया गया है।

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