स्टालिन ने कहा कि वेलूर के जोलारपेट से पानी लाने की योजना सराहनीय है लेकिन यह अस्थाई समाधान होगा। सरकार को स्थाई समाधान निकालने के लिए कदम उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गत फरवरी में विधानसभा सत्र के दौरान भी जल संकट के मुद्दे पर सरकार को कदम उठाने के लिए चेताया गया था। नीति आयोग की बैठक में भी जल संकट के मुद्दे पर चर्चा की गई। महानगर में जल संकट इस कदर गहरा गया है कि मेट्रो वाटर सर्विस में पानी की आपूर्ति के लिए ऑनलाइन बुकिंग करने के बावजूद भी भी लोगों को महीनों तक पानी नहीं मिल पा रहा है।
उन्होंने रामनाथपुरम और तुत्तुकुड़ी समेत अन्य जगहों पर विलवणीकरण संयंत्र लगाने की प्रस्तावित योजना में विफल होने को लेकर मुुख्यमंत्री की निंदा भी की। विलवणीकरण प्लांट योजना अभी भी लंबित है जो सरकार की विफलता को दर्शाती है। जल संचय के लिए किसी प्रकार का प्रबंध भी नहीं किया गया है।
जल संकट को लेकर स्टालिन के सवालों के जबाव में मुख्यमंत्री ने कहा कि डीएमके और कांग्रेस को कर्नाटक सरकार से बातचीत कर पानी छोडऩे का आग्रह करना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस का जेडीएस के साथ और डीएमके का कांग्रेस के साथ गठबंधन है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में सूखे की वजह से भूजल स्तर काफी गिर चुका है। उसके बावजूद सरकार जलापूर्ति के लिए पर्याप्त कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और कावेरी वाटर रेगुलेशन कमेटी (सीडबल्यूआरसी) के निर्देशों के बाद भी कर्नाटक सरकार द्वारा पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने कर्नाटक सरकार से कोई बातचीत नहीं की।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक में अपने चुनावी अभियान के दौरान कहा था कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनी तो कावेरी के चारों ओर मेकेडाटू बांध का निर्माण कराया जाएगा। साथ ही सीडबल्यूआरसी को भंग करने की भी बात कही थी। ऐसे में डीएमके और कांग्रेस ने राहुल की इस टिप्पणी का विरोध क्यों नहीं किया? इसके जबाव में कांग्रेस सदस्य रामासामी ने कहा कि पड़ोसी राज्य से पानी छोडऩे को कहने का अधिकार सरकार का है। इस काम के लिए एक कमेटी का भी गठन करना चाहिए, जिसका विपक्षी दलों द्वारा समर्थन किया जाएगा। नगर प्रशासन मंत्री एस.पी. वेलुमणि ने कहा कि जल संकट को देखते हुए वर्तमान में १५, ५८४ करोड़ की लागत से १ लाख २५ हजार १२३ जल स्रोत पर कार्य चल रहा है।
डीएमके ने सदन से किया वॉकआउट
विधानसभा सत्र के दौरान सोमवार को डीएमके सदस्यों ने पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी की टिप्पणी, जिसमें उन्होंने जल संकट पर नेताओं को दोषी ठहराते हुए लोगों को स्वार्थी बताया था, पर स्पीकर से मुद्दा उठाने की अनुमति नहीं मिलने पर सदन से वॉकआउट कर दिया। सदन के बाहर पत्रकारों से बातचीत में डीएमके अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने कहा कि किरण बेदी ने अपने बयान में तमिलनाडु की जनता को कायर और स्वार्थी बताया है जो निंदनीय है।
राज्य सरकार उस टिप्पणी को स्वीकार करने की मानसिकता में है, लेकिन डीएमके ने उसका विरोध दर्ज कराने के लिए सदन से वॉकआउट कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणी से राज्य की जनता को ठेस पहुंचाई गई है जिसके लिए बेदी को माफी मांगना चाहिए। उल्लेखनीय है कि जल संकट को लेकर किरण बेदी ने ट्वीट कर कहा था कि चेन्नई भारत का छठा बड़ा शहर है लेकिन जल संकट के मामले में यह पहला शहर बन गया है। चार साल पहले अतिवृष्टि की वजह से बाढ़ का सामना करना पड़ा था और अब जल संकट से झूझना पड़ रहा है, ऐसे में समस्या कहां पर है?
साथ ही उन्होंने इस संकट के लिए सरकार का खराब प्रदर्शन, भ्रष्टाचार, राजनीतिक दल के नेताओं की उदासीनता, नौकरशाह और राज्य के स्वार्थी लोगों को जिम्मेदार ठहराया था। इसी बीच डीएमके द्वारा विधानसभा स्पीकर के खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव को वापस लेने की वजह से सत्र में इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई। स्टालिन ने शुक्रवार को कहा था कि डीएमके की ओर से विधानसभा स्पीकर के खिलाफ पेश किए अविश्वास प्रस्ताव को वापस लिया जा रहा है, क्योंकि पहले की तुलना में अब परिस्थिति बदल चुकी है। इसके लिए स्पीकर को एक पत्र भी सौंपा गया है। गत २८ मई को स्टालिन ने तीन विधायकों के खिलाफ नोटिस जारी करने को लेकर स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था।