scriptसंकटों में व्याकुल न हों, स्वयं को समर्थ बनाएं : | Do not be confused about the crisis, make yourself strong: | Patrika News

संकटों में व्याकुल न हों, स्वयं को समर्थ बनाएं :

locationचेन्नईPublished: Nov 08, 2018 12:47:21 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि- आज श्री गौतमस्वामी केवलज्ञान महोत्सव महोत्सव
 

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संकटों में व्याकुल न हों, स्वयं को समर्थ बनाएं :

चेन्नई. बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन और उपस्थित जन मैदिनी को मन में भगवान महावीर के समवशरण की भाव रचना करवाते हुए कहा कि परमात्मा महावीर ने विनय की अनुभूति में डूबी हुई परिषद को अभय का वरदान देते हुए कहा कि मत डरना किसी संकट से, मत सोचना, मत गिड़गिड़ाना, मत कहीं नाक रगडऩा कि मुझे संकट से बचा लो। एक ही अरदास करना कि मैं संकट को जीत पाऊं। संकट के पलों में संकटग्रस्त न बनंू। चाहे भूख लगे, प्यास लगे मैं उसे देखंूगा, उसका शिकार बनकर व्याकुल नहीं होऊंगा। चाहे जैसा संकट आए न फूलों में रम जाऊंगा न कांटों में बिखर जाउंगा। जो संकटों को जीत लेते हैं परमात्मा ने कहा कि उनके जीवन में चार वरदान आते हैं। वही इंसान बन पाते हैं, सामथ्र्य आता है कि परमात्मा की देशना सुन पाएं। उन्हीं की आस्था अखंड बन जाती है। इस प्रकार निरंतर वरदान बरसाते हुए प्रभु एक-एक बात का अहसास कराते हुए इंद्रभूति गौतम अैर पूरी परिषद को जगाते रहे कि प्रमत्त मत हो जाना। प्रमादी को कभी परमात्मा नहीं मिलते, संसार तुम्हें बेहोश करने पर तुला हुआ है, जिनशासन ही तुम्हें होश में लाता है। चाहे मौत आए, उसके पहले ही मौत की तैयारी करना। हर पल इसे महसूस करते रहना, चलने को तैयार रहना। जो प्रीपेयर नहीं रहते वे कंफर्ट नहंीं हो पाते। ऐसा जीव जीओ कि मौत तुम पर हमला न कर पाएं। इस प्रकार परमात्मा निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं। उस भोर की वेला में पूरी परिषद आंख बंदकर प्रभु के श्रुत स्वरों में स्वयं को तल्लीन करते हुए डूबी हुई है। उस देशना के बीच एक पल में प्रभु ने मन ही मन एक पल में इंद्रभूति गौतम को संदेश दिया और इंद्रभूति उठे और किसी को पता ही नहीं चला। वे चल पड़े। देशना चलती रही, एक एक शिखर को छूती हुई आगे बढ़ती रही अैर शिखर पर पहुंची। अनादिकाल की यात्रा। प्रभु ने विश्व का स्वरूप सामने रखा। जो पदार्थ से मुक्त हो जाते हैं। वो कैसे सिद्ध हो जाते हैं। वो चाहे जहां कहीं भी हो वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं। यह चेतना चाहे तो स्वयं को मिट्टी बना ले, चाहे तो पदार्थ बना ले, वे एकेन्द्रीय और बेइन्द्रिय जीव बनते रहते हैं और वो नारकी में जाते हैं। अपनी चेतना में बोए हुए बीजों को रोक दें और स्वयं को मोक्ष मार्ग पर प्रशस्त करें।
श्रावक जंवरीलाल के ३१वां मासखमण के अवसर पर चातुर्मास समिति के द्वारा उनका सम्मान और तपस्या की अनुमोदना की गई।
गुरुवार को प्रात: भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर श्रीमद् उत्तराध्ययन श्रुतदेव की भव्य आराधना और प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी केवलज्ञान महोत्सव तथा नववर्ष मंगलपाठ कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
कार्यक्रम में चातुर्मास समिति के चेयरमेन नवरतनमल चोरडिय़ा, अध्यक्ष अभयश्रीश्रीमाल, कार्याध्यक्ष पदमचंद तालेड़ा, महामंत्री अजीत चोरडिय़ा, कोषाध्यक्ष जेठमल चोरडिय़ा, सुनील कोठारी, कांताबाई चोरडिय़ा तथा एएमकेएम ट्रस्ट के धर्मीचंद सिंघवी, शांतिलाल खांटेड़ सहित अनेक उपनगरीय क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं और समाज के गणमान्य उपस्थित रहे।
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