राज्य के चिकित्सा एवं परिवार कल्याण मंत्री एमए सुब्रमण्यन के साथ हाल ही में हुई बैठक में अस्पताल के डीन ने यह मुद्दा उठाया था। दवाओं की खरीद के लिए नोडल एजेंसी टीएनएमएससी है, अस्पतालों को स्थानीय खरीदारी करने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान करती है। डॉक्टरों ने बताया कि जिन दवाओं की कमी है उनमें ज्यादातर जरूरी दवाएं हैं।
इन दवाओं की है कमी
डॉक्टरों ने कहा कि जिन दवाओं की ज्यादातर कमी है, उनमें सिप्रोफ्लोक्सासिन, फ्य़ूरोसेमाइड, ओमेप्राजोल, क्लोपिडोग्रेल और सेफोटैक्साइम हैं। तमिलनाडु के अस्पतालों में एंटीबायोटिक्स और आईवी तरल पदार्थ भी कम आपूर्ति में हैं और इससे मेडिकल कॉलेज अस्पतालों सहित अस्पतालों के कामकाज में बड़ी मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इसके अलावा पेरासिटामोल, डिक्लोफेनाक, सेफोटैक्सिम, सेफ्ट्रिएक्सोन और इन्फ्यूजन फ्लूइड सहित इंजेक्शन की भारी कमी है।
पांच महीने से जूझ रहे मरीज
मदुरै के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा कि आम तौर पर दवा आपूर्ति में मुद्दे फरवरी में सामने आते हैं, लेकिन मार्च के अंत तक इसे हल कर लिया जाता है, लेकिन अब यह पहले से ही अगस्त है और अभी भी हमारे पास सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों के कामकाज में बहुत मुश्किल हालात पैदा करने वाली दवाओं की कमी है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी न किसी दवा की लगातार कमी है और एंटीबायोटिक दवाओं की भारी कमी है।
कोविड के बाद मरीजों की संख्या बढ़ी
डॉक्टर ने यह भी कहा कि कमी ज्यादातर कोविड-19 के बाद दवाओं की परिवर्तनीय कीमतों के कारण है और इसके कारण निविदाएं जारी होने में देरी हुई है। सर्विस डॉक्टर्स और पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पी. समीनाथन ने बताया कि कोविड-19 के बाद सरकारी अस्पतालों से इलाज कराने वालों की संख्या बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप दवा की खपत बढ़ी है। हालांकि, सरकार ने दवा आवंटन में आनुपातिक वृद्धि नहीं की है।