तमिलनाडु में नवरात्र में गोलू सजाने की प्रथा है। घरों में पांच, सात और नौ पेढिय़ों में गोलू के तहत देवी-देवताओं की मूर्तियां सजाई जाती है।
पुश्तैनी कार्य
पश्चिम बंगाल के २४ परगना जिले से आए मूर्तिकार किशोरी मोहन पाल (५०) ने बताया कि उनकी दो पीढिय़ां इस काम को करती आ रही हैं। वे १८ साल की उम्र से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं। इसी आयु में वे चेन्नई आए और १९९८ से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं। साल में ६-८ महीने गणेश, विश्वकर्मा और दुर्गा की मूर्तियां बनाने के बाद बंगाल लौट जाते हैं।
देवी-देवताओं की प्रतिमा को लेकर नए प्रयोग
बकौल, पाल हर वर्ष पंडालों की सजावट में अनूठेपन को तवज्जो दी जाती है ठीक उसी प्रकार पंडाल में स्थापित करने के लिए देवी देवताओं की प्रतिमा को लेकर भी नए प्रयोग होते हैं। ग्राहकों की मांग के अनुरूप मूर्तियां बनाई जाती है इस बार हम अनाज का प्रयोग करेंगे।
उधर, बंगाली समुदाय का मूर्तिकार एक चाल की मूर्ति बनाने में तल्लीन हैं। इसमें एक ही फर्मे पर मां दुर्गा, महिषासुर, गणेश, सरस्वती, कार्तिकेय की मूर्ति रहती है। खास बात यह कि एक चाल की मूर्ति बंगाली समाज द्वारा बनाई जाती है जिसकी अपनी विशेषता है।
दुुर्गा मां की मूर्ति बनाने में मिलती है ख़ुशी
पिता किशोरी मोहन पाल के साथ काम करने वाले रिंकू पाल ने बताया कि देवी दुर्गा की मूर्तियां बनाने में कई बारीकियों पर ध्यान से काम किया जाता है। ज़्यादातर कारीगर बंगाल के होते हैं। उनकी बनाई हुई मूर्तियों को ज्यादा पसंद किया जाता हैं। मूर्तियों की आकृति को कारीगर धीरे धीरे सांचे में ढालता है।
सूती साड़ी का उपयोग
इन कारीगरों का कहना है कि प्राकृतिक रंग महंगे हैं और उनसे चमक भी नहीं आती। मूर्ति बनाने में केवल सूती साड़ी और आसानी से नष्ट हो जाने वाले जेवरों का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। रिंकू का कहना है कि यह काम उन्होंने अपने पिता से सीखा और पूजा के दिनों में दुर्गा मां की मूर्ति बनाने में उनको ख़ुशी मिलती है।
चेहरे पर तेज, भाव उभारना चुनौतीपूर्ण
मूर्तिकारों के अनुसार प्रतिमाओं के निर्माण में विशेष चीज यह देखी जाती है कि जो भी प्रतिमा बन रही है उनके चेहरे पर तेज, भाव स्पष्ट तौर पर उभरकर आए। जैसे मां महिषासुर को मार रही हैं तो दुर्गा मां की प्रतिमा के चेहरे पर वह क्रोध नजर आए और महिषासुर की प्रतिमा पर भय। इन चीजों को मूर्तिकार, कलाकार ध्यान देते हैं।
उनका यही लक्ष्य होता है कि उनकी बनाई मूर्ति जब पंडाल में जाए तो लोगों को लगे बस अब मां बोल उठेगी।
विशेष प्रकार की दूध मिट्टी का उपयोग
उन्होंने बताया कि मूर्ति निर्माण में हुगली नदी के किनारे की मिट्टी का उपयोग किया जा रहा है। यह विशेष मिट्टी कोलकाता से चेन्नई लाई जाती है। मूर्ति में विशेष आभा के साथ चमक बढ़ाने के लिए बंगाल से विशेष प्रकार की दूध मिट्टी का उपयोग किया जाता है।
इसके अलावा परम्परानुरूप ‘तवायफ के कोठेÓ की मिट्टी भी वे साथ लेकर आते हैं। इस मिट्टी को प्रतिमा बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी में मिलाया जाता है। मां की प्रतिमा के लिए लोगों की ओर से बड़ी संख्या में ऑर्डर दिए जा रहे हैं। ३० मूर्तियां तैयार की गई हैं। समय पर लोगों को मूर्तियां देने के लिए काम जोरों पर है। उनके साथ उनके साथ काम करने वाले कारीगर भी सहयोग कर रहे हैं।
महंगाई की मार
महंगाई की मार हर क्षेत्र में दिखने लगी है। महंगाई के कारण मूर्ति के भाव में भी इजाफा हुआ है। कुछ मूर्तियां २० से लेकर ४० हजार के बीच है तो कुछ उससे भी कम सस्ती दरों पर उपलब्ध कराय जाता है। रिंकू पाल ने बताया कि पहले के मुकाबले दूध मिट्टी, मोती कलर और सामान्य कलर की दरों में वृद्धि हुई है।
साथ ही मिट्टी, बांस, पैरा के भाव के साथ किराए में वृद्धि हुई है। ऐसे में मूर्तियों के भाव में बढ़ोतरी होना स्वभाविक है।