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नौकरी छिनने व बेरोजगारी ने बढ़ाई चिंता

locationचेन्नईPublished: Aug 20, 2020 06:33:38 pm

-महामारी ने रोजगार व नौकरियों पर किया असर

effects of the pandemic on the lives of youths

effects of the pandemic on the lives of youths

चेन्नई. लॉकडाउन में कैद हुए लोगों के जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ा है। कई नौकरी छिन जाने के भय से तनाव का शिकार तो कई बेरोजगारी व अकेलेपन से बीमारियों से ग्रसित हो गए। कोरोना महामारी ने लोगों की जिंदगी में बिखराव डाल दिया। मनौवैज्ञानिकों व मानसिक रोग से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं की मानें तो यह सब लॉकडाउन के बाद बने हालात के चलते अधिक हुआ। लॉकडाउन के शुरुआती दो-तीन महीने अधिक भयावह रहे। कोरोना के भय के साथ ही नौकरी छूटने, बेरोजगारी, एकांतवास, परीक्षा में असफलता समेत अन्य वजहों से भी लोग तनाव व अवसाद का शिकार होते गए। इसकी वजह से कई लोगों को गलत कदम उठाने पड़े।
गूगल पर खंगाले उपाय
हालांकि लॉकडाउन में कई सकारात्मक बातें हुईं और लोगों को कई तरह के फायदे भी हुए। वर्क फ्रॉम होम के तहत लोगों को अधिक समय काम करना पड़ा। युवा अपने भविष्य को लेकर अधिक आशंकित दिखे। हालांकि अवसाद, तनाव व चिंता से निपटने के उपाय लोगों ने गूगल में भी ढूंढ़े।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के वैश्विक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार कोविड-19 के दौरान विश्व में 17 फीसदी लोग अवसाद, तनाव व चिंता के शिकार हुए। यूथ एंड कोविड-19 इंपेक्ट ऑफ जॉब्स, एजुकेशन, राइट एंड मेंटल वेल बीइंड शीर्षक से प्रकाशित अध्ययन में दावा किया गया कि 38 फीसदी युवा अपने भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति में दिखे। युवाओं ने माना कि महामारी कहीं न कहीं उनके करियर पर असर डाल रही है। हर पांच में से दो युवाओं की आय में कमी दर्ज की गई। युवाओं ने नौकरी छिनने का डर भी बताया।
शिक्षा व रोजगार
छात्रों का कहना था कि वे ऑनलाइन कक्षा पर उतना ध्यान नहीं दे पाए जितना रेगुलर क्लास में दे पाते हैं। इससे वे चिंता, अवसाद व तनाव में रहे। ऐसे 22 फीसदी छात्र तनाव में रहे जिनकी शिक्षा में बाधा पहुंची। अध्ययन में 112 देशों के 12 हजार से अधिक लोगों की राय ली गई। शिक्षित युवा व इंटरनेट चलाने वालों को इसमें शामिल किया। 18 से 29 वर्ष आयुवर्ग के इन युवाओं में लोगों से रोजगार, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषयों पर पूछा गया।
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मन में डर बैठा
जब लॉकडाउन किया गया तो लोगों में मन में एक डर-सा बैठ गया था िकहीं वे बीमारी की चपेट में न आ जाएं। तनाव के हालात तब बनते हैं जब उसी के बारे में सोचने लग जाते हैं। यानी किसी चीज को दिमाग में बिठा लेते हैं। डर के चलते कई बार लोग अपनी बात किसी को बता भी नहीं पाते।
– मालती स्वामीनाथन, मानसिक रोग सामाजिक कार्यकर्ता, चेन्नई
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