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अवसर मिलने पर भोग त्यागने वाला सच्चा संयमी

locationचेन्नईPublished: Oct 25, 2018 03:24:00 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

अपने जीवन में कभी किसी का अपमान करोगे तो उसका पुन: सम्मान भी करना ही पड़ता है, इसलिए जीवन में कभी भी किसी का अपमान न करें।

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अवसर मिलने पर भोग त्यागने वाला सच्चा संयमी

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा तप करने वालों का अभिनन्दन देवता भी करने आते हैं और उनका सानिध्य पाकर स्वयं को धन्य मानते हैं। अपने जीवन में कभी किसी का अपमान करोगे तो उसका पुन: सम्मान भी करना ही पड़ता है, इसलिए जीवन में कभी भी किसी का अपमान न करें। जो व्यक्ति मौका न मिलने पर चोरी, झूठ, अपराध और भोग छोड़ दिए हो वह सच्चा संयमी नहीं बल्कि जिसने अवसर मिलने पर भी भोगों को ग्रहण नहीं किया वही सच्चा साधक और संयमी होता है।
उत्तराध्ययन में बताया कि तप करने की भावना के साथ हरिकेशी मुनि अपने पूर्वजन्म की साधना से अभिमान न हो ऐसी भावना के साथ साधना के मार्ग पर चलते हैं। कुछ देवता देवलोक में रहते हुए भी ऐसी भावना के साथ जीते हैं तो उनका जीवन धन्य हो जाता है। किसी के तप के कारण आनेवाले देवता उस तपस्वी के सेवक बनकर आते हैं और उसी प्रकार देवगण उन मुनि की भक्ति करते हुए उनके साथ रहने लगते हैं। तप के कारण मुनि में अनेक लब्धियां प्रकट हो जाती हैं। वे एक बार बनारस के एक मंदिर में जाकर ध्यानमग्न हो जाते हैं और वहां पर राजकुमारी अपनी सखियों के साथ आती है और उनसे घृणा करती है। मुनि के साथ रहनेवाले व्यंतर देवता यह सब देख उस राजकुमारी की मानसिक स्थिति को प्रभावित कर देते हैं।
राजा द्वारा पूछने पर मांत्रिक सारी स्थिति बताते हैं और उपायस्वरूप राजकुमारी को उन मुनि को समर्पित करना कहते हैं। राजा मुनि के पास जाते हैं और राजकुमारी से विवाह के लिए कहते हैं तो मुनि उसे स्वीकार नहीं करते और राजा उसे वहीं छोडक़र चले जाते हैं और कुछ समय में राजकुमारी मुनि की औरा के कारण स्वस्थ हो जाती है और महल को लौटती है तो राजा कहते हैं कि अब इसे कौन स्वीकार करेगा और इस प्रकार पुरोहितों से मंत्रणा कर उसका विवाह एक ब्राह्मण से करा दिया जाता है। ब्राह्मण राजकुमारी से विवाह की खुशी में भोज और यज्ञादि का आयोजन करता है और उस समय हरिकेशी मुनि तपस्या का पारणा के लिए भिक्षु हेतु वहां आते हैं और मुनि के साथ रह रहे देवता आहार देने को मुनि की वाणी में कहते हैं। ब्राह्मण उनका कृशकाय स्वरूप देखकर तिरस्कार करते हैं। देवता कहते हैं कि जिनको भोजन कराने से तुम्हारा सौभाग्य बढ़ेगा उनका तिरस्कार कर इसे तुम पाप क्षेत्र में विनियोग कर रहे हो, तुम मात्र शब्दों का बोझ ढ़ो रहे हो। किसी के मांगने पर जो दे पाए यह उस देनेवाले का सौभाग्य होता है लेकिन वे सभी इन्कार करते हैं और उन्हें भगाने की कोशिश करते हैं।
मुनि के सेवक व्यंतर देव यह सब देखकर वहां पर अपनी माया से सभी को दंडित करते हैं और तभी वह राजकुमारी वहां आकर उन मुनि को देखकर क्षमा मांगती है और कहती है कि इन मुनि की कृपा के कारण ही तुम लोग मुझे प्राप्त कर पाए हो। वह उनसे क्षमा मांगने को कहती है। ब्राह्मण क्षमा मांगते हुए उन्हें क्रोध न करने और इतनी लब्धियों की प्राप्ति का मार्ग और देवताओं द्वारा सेवित होने का उपाय और तप का मार्ग पूूछते हैं।
स्वजनों के साथ ऐसा रिश्ता रखें कि हर बात उनसे शेयर कर पाएं। यह रिश्ता जीवन में आ जाए तो कोई भी युवा गलत रास्ते पर नहीं जा पाएगा। जो धर्ममार्ग पर चलते हुए आनन्द की अनुभूति करता है वह सारे दोषों से मुक्त हो जाता है। धर्म के सरोवर में शांतिपूर्वक जो स्नान करता है, वह निर्मल और धन्य हो जाता है।
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