हम अपने हृदय को पावन बना लें। मन विषय-विकार वासना से ऊपर उठाकर परमात्मा को देव-गुरु-धर्म को हृदय में आमंत्रित करें। योग्य एवं उचित स्थान पर ही योग्य लोग आसीन होते हैं। जो अन्तर यात्रा कर लेता है उसे बाहर के तीर्थ की आवश्यकता नहीं रहती। मीरा ने कृष्ण को हृदय दिया, सुदामा ने कृष्ण को हृदय दिया, गौतम ने महावीर को हृदय दिया, चन्दनबाला ने महावीर को हृदय दिया।
साध्वी डॉ. हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा लोहे के समान प्रकृति वाले मनुष्य आये हुए दु:ख से दु:खी हो जाते हैं। सोने जैसी प्रकृति वाले मनुष्य दु:ख सहनकर करके सुखी होने का प्रयास करते हैं लेकिन हीरे के समान प्रकृति वाले मनुष्य सुख और दु:ख दोनों स्थिति में समभाव रखते हैं।
उन्होंने बताया कि आज सभी को सुख प्रिय है, दु:ख कोई नहीं चाहता जबकि सुख और दु:ख स्वीकृृत होते हैं। दूसरों को सुख पहुंचाया तो प्रतिफल में सुख मिलता है और दूसरों को दु:ख दिया तो दु:ख मिलता है। दुकान पर आये ग्राहक की तरह हम सुख को रोकना चाहते हैं और भिखारी की तरह दु:ख को हम भगाना चाहते हैं।
अजीतराज सुरेन्द्रकुमार मेहता एवं पदमचंद चोरडिय़ा की आग्रह विनती से अर्चना महासती मंडल का अरिहन्त वैकुण्ठ में पधारना हुआ। श्री मधुकर उमराव अर्चना चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार मंत्री हीराचंद पींचा ने बताया कि साध्वी मंडल यहां से थाना स्ट्रीट की ओर विहार करेंगे।