इससे स्पष्ट पता चलता है की अन्य राज्यों से प्रवासी मजदूरों के घर वापसी से उत्तर पूर्वी राज्यों में कोरोना मरीजो की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है। हालांकि चेन्नई में बहुत सेे ऐसे परिवार भी हैं जो इस महामारी के चलते अपनी कर्मभूमि को छोडऩे को तैयार नहीं हैं। ऐसे लोगों का कहना है की जब कोरोना वैश्विक महामारी है और इसका प्रभाव पूरे विश्व में है, कोई राज्य कोरोना महामारी से अछूता नहीं है, ऐसे में अपनी कर्मभूमि को छोड़कर घर वापसी कतई उचित नहीं है। इन लोगों का कहना था कि यदि हम इस समय घर वापस जाएंगे तो हमें 21 दिन तक क्वारंटाइन सेंटर में रहना पड़ेगा। ऐसे में न हम घर के रहेंगे न घाट के। अधिकांश लोगों का कहना था कि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे पिछड़े राज्यों में स्वास्थ्य सेवा मुकम्मल नहीं है, वहां अस्पतालों की हालत बेहद ही दयनीय है, वहां जाकर हम और परेशानी में फंस सकते हैं इसलिए बेहतर होगा कि हम अपनी कर्म भूमि पर ही डटे रहें और इस संकट का डंटकर मुकाबला करें।
बिहार, ओडिशा में क्वारंटाइन की व्यवस्था भी सही नहीं
कोलत्तूर निवासी सीके चौधरी का कहना है कि हर दिन मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद सरीखे देश के अन्य हिस्सों से भारी संख्या में मजदूर घर वापसी कर रहे हैं, ऐसे में बिहार, उत्तर प्रदेश या ओडिशा आदि राज्यों में स्वास्थ्य सेवा मुकम्मल नहीं है, कोरोना जांच का सेंटर भी पर्याप्त नहीं है क्वारंटाइन सेंटर में खाने पीने का व्यवस्था भी सही नहीं है, ऐसे में यदि हम यहां से घर वापस जाएंगे तो हमें और भी मुसीबत से गुजरना पड़ेगा। वहां क्वारंटाइन सेंटर शौचालयों की भी कमी है इसलिए अभी घर लौटना कतई उचित नहीं है। अंबत्तूर निवासी जितेंद्र झा का कहना है कि जब पूरे देश में कोरोना का प्रकोप है तो हमें इस महामारी के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए, धीरे-धीरे इंडस्ट्रील खुल रही हैं काम शुरू हो रहे हैं इसलिए हमें धैर्य के साथ इस संकट का सामना करना चाहिए। अडयार निवासी अतुल सिंह कहते हैं पहले तो पूरे देश में लॉकडाउन था लेकिन अब तो बाजार में छूट मिली है, गांव वापसी से 20 दिनों तक क्वारंटाइन सेंटर में रहना होगा, ग्रामीण क्षेत्रों में किसी प्रकार की सुविधा नहीं है, ऐसे में घर वापसी खतरे से खाली नहीं है। ब्रॉडवे निवासी सत्यप्रकाश तिवारी बताते हैं इस संकट काल में कर्मभूमि को छोड़कर जाना उचित नहीं है, अब तो कामकाज धीरे-धीरे खुल रहा है ऐसे में घर वापसी करने की कोई जरूरत नहीं है जबकि बिहार, यूपी झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों में स्वास्थ्य सेवा बिल्कुल बदहाल है। हर प्रवासी को अपनी कर्म भूमि में ही टिके रहने की जरूरत है। कावांकरै निवासी कुलदीप कहते हैं कि उनके माता-पिता ने घर वापस आने को मना किया है। उनका कहना था कि यदि यहां से वापस जाओगे तो 21 दिन तक क्वारंटाइन सेंटर में रहना होगा जहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं है। शौचालय व पीने का शुद्ध पानी नहीं है, खाना समय से नहीं मिलता इसीलिए अभी शहर में ही रहो।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों से चेन्नई समेत अन्य राज्यों से भी प्रवासी मजदूर और अन्य पेशे से जुड़े लोग अपने गृह राज्य जाने के लिए बेचैन हैं। वे हर हाल में घर वापसी चाहते हैं, सरकार भी अपने स्तर पर श्रमिक स्पेशल ट्रेन चला रही है। हर दिन हजारों की संख्या में लोग घर वापसी कर रहे हैं लेकिन इन मजदूरों के आगमन से ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वृद्धि का खतरा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिससे राज्यों की सरकार और निवासियों में खौफ का माहौल है।