scriptमूर्तिकला विशिष्टता के लिए मिला जियोग्राफिकल इंडिकेशंस | Geographical Indications Found for Sculpture Specification | Patrika News

मूर्तिकला विशिष्टता के लिए मिला जियोग्राफिकल इंडिकेशंस

locationचेन्नईPublished: Mar 13, 2018 09:48:01 pm

महाबलीपुरम में हाथ से तैयार की गई पत्थर की मूर्तियों को इस क्षेत्र की कला विशिष्टता के लिए जीआई रजिस्ट्री द्वारा जियोग्राफिकल इंडिकेशंस दिया गया है।

Geographical Indications Found for Sculpture Specification

Geographical Indications Found for Sculpture Specification

चेन्नई।महाबलीपुरम में हाथ से तैयार की गई पत्थर की मूर्तियों को इस क्षेत्र की कला विशिष्टता के लिए जीआई रजिस्ट्री द्वारा जियोग्राफिकल इंडिकेशंस दिया गया है। जीआई की मुहर लगने से इन मूर्तियों को अब कानूनी संरक्षण मिलेगा। तमिलनाडु हैंडिक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के बदले यह याचिका तमिलनाडु इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी राइट के अध्यक्ष और अधिवक्ता संजय गांधी ने दायर की थी। यह जीआई मिलने के बाद राज्य सरकार की कॉरपोरेशन अब यह महाबलीपुरम स्टोन स्क्लपचर की आधिकारिक व्यवहारकर्ता हो गई है। गंाधी ने बताया कि यह याचिका उन्होंने ३१ मई २०१३ को दायर की थी लेकिन उन्हें इसमें सफलता प्राप्त करने में चार साल से ज्यादा का समय लग गया।

मंदिर वास्तुकला के लिए पहचाना जाता है महाबलीपुरम

महाबलीपुरम के पत्थर की मूर्तियों के चौड़े ललाट, तीखी नाक, लम्बीं आंखें, लटकते कान और अंडाकार आकृति होती है। महाबलीपुरम इलाके की गुफा वास्तुकला, पत्थर की वास्तुकला और संरचनात्मक मंदिर पल्लव काल की ऐतिहासिक कला है जिसका इस्तेमाल आज भी यहां के लोग करते हैं। यह कला सातवीं सदी की है जो पल्लव काल के दौरान फलीभूत हुई थी। महाबलीपुरम में इस काल की कई कलाकृतियां अभी भी आपकों देखने को मिल जाएंगी। यहां अभी भी पत्थरों को आकार देने के लिए हथौड़े और छेनी का इस्तेमाल किया जाता है। केरल के मालापुरम जिले के मेसर्स निलाम्बुर टीक हैरिटेज सोसाइटी ने निलाम्बुर टीक को भी जीआई मान्यता दिलाने के लिए याचिका दायर कर रखी है, जिसे जल्द ही सफलता मिलने की सम्भावना है।

टीक विश्व में सबसे शख्त लकड़ी की प्रजाती है। यह लकड़ी काफी महंगी होती है। यह खासतौर पर भारत के अलावा म्यांमार, थाईलैंड और लाओस में पाई जाती है। मालापुरम जिले की टीक को मक्का ऑफ टीक भी कहा जाता है।

2007 से अब तक 15 जीआई रजिस्ट्रेशन कराए

गांधी ने वर्ष २००७ से लेकर अबतक १५ जीआई रजिस्ट्रेशन कराए हैं। इसके अलावा वह तमिलनाडु सरकार के हथकरघा व कपड़ा विभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह तमिलनाडु के इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी राइट के अध्यक्ष और चोलामंडलम आईपी के प्रधान सलाहकार हैं। १७ साल का अनुभव रखने वाले यह अधिवक्ता वर्ष २००० से आईपीआर के लिए विभिन्न संगठनों का प्रतिधिनित्व कर चुके हैं। इन्होंने अबतक जो जीआई दर्ज कराई है उनमें प्रमुख नाम कांचीपुरम सिल्क, तंजावुर डोल, एतोमोझी लम्बे नारियल, तंगालिया शावि, पट्टामाडै पाई, तंजावुर वीनै, कोवै कोरा कॉटन, मदुरै संगुड़ी साड़ी, महाबलीपुरम पत्थर की मूर्तियां हैं। जीआई अधिनियम के तहत उन्होंने कांचीपुरम सिल्क के २१ सोसाइटी को अधिकृत यूजर सर्टिफिकेट दिलाया है।

इसके अलावा उन्होंने भवानी जमकलम की २९ सोसाइटी, सेलम सिल्क के ७ सोसाइटी और ८२ कोवै कोरा कॉटन को जीआई मान्यता दिलाई है। लोगों में आईपीआर के प्रति जागरूकता लाने के लिए वह हर साल वल्र्ड आईपी दिवस के अवसर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम करते हैं। संजय गांधी ने जापान के टोक्यो में वर्ष २००७ में जापान पेटेंट ऑफिस द्वारा आयोजित १५ दिनों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भारत का प्रतिधिनित्व किया था। वर्ष २०१३ में एशिया पेसिफिक इंडस्ट्री प्रोपर्टी सेंटर और जापान इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोमोशन इनवेशन एंड इनोवेशन द्वारा बैंकॉक में आयोजित इंटरनेशनल फॉलोअप सेमिनार में भी वे हिस्सा ले चुके हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो