दीक्षा लेना ही जीवन की सच्ची साधना एवं कसौटी है। हर साधक उस कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता है, लेकिन जिन्होंने दीक्षा अंगीकार करते हुए संयम का मार्ग अपनाया है उन साधकों की स्तुति करने से साधक के भीतर भी संयम का रंग चढ़ जाता है।
गुरु उस पारस पत्थर के समान है, जिसके संसर्ग में जाने से आत्मा भी परमात्मा बन जाती है। मुनि ने आचार्य पाश्र्वचन्द्र की महिमा बताते हुए कहा वे उग्र विहारी, आगमों के गूढ़ रहस्यों के ज्ञाता एवं वचन सिद्ध साधक है। वर्तमान में जयगचछ के 12वें पट्टधर हैं। जिस प्रकार एक माली उद्यान की देखभाल करता है, उसी प्रकार आचार्य पाश्र्वचन्द्र भी जयगच्छ के नायक के रूप में चतुर्विध संघ की सार संभाल कर रहे हैं।
उन्होंने मात्र 12 वर्ष की उम्र में दीक्षा अंगीकार की। आज 70 वर्ष की उम्र में भी उसी प्रकार से तप साधना में रत है।
मुनि डॉ. पदमचंद्र के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे दृढ़ संकल्प के धनी हैं। उनके आगामी, व्यवहारिक, वैज्ञानिक एवं प्रेरक ओजस्वी वचनों से जनमानस में विशेष परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। जयकलश मुनि ने गीतिका पेश की। जयपुरंदर मुनि ने डॉ. पदमचंद्र के दीक्षा प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा हर जीव के जीवन में परिवर्तन के अनेक निमित्त उपस्थित होते हैं लेकिन विरले ही साधक उन निमित्त से प्रेरणा पाकर जीवन का कल्याण करने के लिए अपने जीवन का कल्याण कर लेते हैं।
इससे पूर्व समणी श्रुतनिधि ने विचार व्यक्त किए। संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया। इस अवसर पर जयसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसमल गादिया, कमल खटोड़ ने भी गुरु गुणगान किया। मुनिवृंद यहां से विहार कर साहुकारपेट स्थित गौतम रुणवाल के निवास पर जाएंगे।