गौरतलब है कि रेडहिल्स झील जो महानगर का सबसे बड़ा जलस्रोत है, वह पूर्णरूपेण सूख चुका है। सतह पर बड़ी बड़ी दरार पड़ गई है, लेकिन सरकार इस सरोवर के जीर्णोद्धार के प्रति अभी भी लापरवाह बनी हुई है। पीडब्ल्यूडी विभाग ने इस सरोवर को गहरा करने और गाद निकालने के लिए महज एक जेसीबी मशीन को काम में लगाया है, जबकि इस सरोवर को गहरा करने और गाद निकालने के लिए दर्जन से भी अधिक जेसीबी लगाने की दरकार है। चारों तटबंध को भी मजबूत करने की जरूरत है।
रेडहिल्स सरोवर का उत्तरी भाग बिलकुल सूख गया है। और तटबंध भी ध्वस्त हो चुका है। सरोवर के अंदर घास फूस उग आया है जिनमें माल-मवेशी चरने लगे हैं। ऐसे में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि इस सरोवर को आगामी मानसून आने से पहले इसका कायाकल्प करें ताकि जलाशय में जलसंग्रहण मुकम्मल हो सके।
स्थानीय निवासियों का आरोप हैै कि सरकार की उदासीनता के कारण ही रेडहिल्स सरोवर सूख गया है। वर्ष २०१५ के अप्रैल में जब चेन्नई में जल संकट उत्पन्न हुआ था उस समय भी इस जलाशय में पानी बहुत कम गया है, यदि सरकार रेटेरी झील की तरह इन जलाशयों का भी कायाकल्प कराई होती तो आज महानगर को प्यास बुझाने के लिए इतनी जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती।
रेटेरी – कोरटूर झील के प्रति उदासीन सरकार
यह अलग बात है कि मेट्रो वाटर विभाग ने रेटेरी झील के पानी के उपयोग के लिए जल शुद्धीकरण का काम शुरू कर दिया है, लेकिन इन झीलों के सांैदर्यीकरण, साफ-सफाई आदि कार्यों के प्रति अभी भी सरकार गंभीर नहीं है। रेटेरी झील के दक्षिणी तटबंध का निर्माण हो चुका है। लेकिन इस तटबंध का उपयोग लोग शौचालय के रूप में करने लगे हैं। यह तटबंध पर गंदगी इस कदर नजर आता है कि यहां से गुजरना भी कठीन है। जबकि इस जलाशय में अभी भारी मात्रा में पानी उपलब्ध है। वही रेटेरी झील के उत्तरी भाग में अब तक जलकुंभी जस की तस है।
उत्तरी भाग में बांध बनाने का काम शुरू भी नहीं हुआ है। वही पश्चिमी भाग में सीवर का नाला बहता है, बारिश और बाढ़ आने की स्थित में रेटेरी के इस नाले और झील का पानी मिश्रित हो जाता है। लेकिन इस नाला और झील के बीच बांध अब तक नहीं बनाया गया है। इससे स्पष्ट है कि सरकार जल संग्रहण के प्रति अभी भी लापरवाह बनी हुई है। जबकि शहर पानी के लिए त्राहिमाम कर रहा है।