तमिलनाडु सरकार ने सोमवार को नेडुंचेझियन, रविंद्रन और मुनियप्पन को एमजीआर जन्मशती समारोह के अवसर पर जेल से रिहा कर दिया था। तीनों ही एआईएडीएमके कार्यकर्ता है। सरकार की अनुशंसा पर हुई इस रिहाई को लेकर विपक्षी दलों ने राज्यपाल से सवाल किया कि वे राजीव गांधी हत्याकांड के ७ कैदियों की रिहाई पर क्यों मौन हैं?
राज्यपाल की ओर से राजभवन से जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में इन तीन कैदियों की रिहाई को लेकर चले घटनाक्रम की जानकारी और सफाई दी गई।
राज्यपाल ने कहा जब इस बात की संतुष्टि हो गई कि तीनों कैदियों को स्थानीय समाज फिर से अपना लेगा तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसले कि वे उग्र भीड़ का हिस्सा थे और उसी मानसिक अवस्था में बस को आग लगा बैठे यह निर्णय हुआ। तीनों ने जेल में १३ साल काट लिए थे। लिहाजा संविधान के अनुच्छेद १६१ के तहत समय पूर्व रिहाई के आदेश दिए गए। इसी अनुच्छेद के तहत १६२७ ताउम्र कैदियों को रिहा किया गया है। आजीवन कारावास की सजा प्राप्त अन्य कैदियों के साथ इनकी फाइल आई थी।
राज्यपाल ने कहा कि केस दर केस की समीक्षा करने के बाद उन्होंने इन तीनों की फाइल सरकार को पुनर्विचार करने के लिए लौटा दी थी। सरकार ने पुन: विचार कर २५ अक्टूबर को उसी अनुशंसा के साथ फाइल भेज दी कि तीनों को रिहा किया जा सकता है। फिर राजभवन में एडवोकेट जनरल, मुख्य सचिव और गृह सचिव ने ३१ अक्टूबर को उनसे भेंट की। उनको पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताया गया कि कैदियों की मंशा छात्राओं को जिन्दा जलाने की नहीं थी। वे उग्र भीड़ का हिस्सा थे और उसी मानसिक अवस्था में बस को आग लगा बैठे थे।
राज्यपाल ने बताया कि फिर उन्होंने महाधिवक्ता से सुप्रीम कोर्ट के इस केस में दिए गए आदेश की पृष्ठभूमि में विचार मांगे। महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया कि उग्र भीड़ जिसमें समीक्षा याचिका दायर करने वाले तीनों अभियुक्त भी शामिल हैं का इरादा केवल सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाना था। वे उनकी राजनीतिक नेता को हुई सजा का विरोध कर रहे थे। बस आगजनी में जलकर मरी छात्राएं भी उनके लिए अज्ञात थी। इसमें कोई पूर्व साजिश नहीं था और वहां जो कुछ भी घटा वह चंद क्षणों में हुआ। महाधिवक्ता ने भी सुझाव दिया कि तीनों की रिहाई सरकार द्वारा तय मापदण्ड के दायरे में आती है।
राज्यपाल ने कहा कि एडवोकेट जनरल से प्राप्त विधिक विचार के बाद सरकार ने इनकी रिहाई की फाइल उनको भेजी गई जिसमें गृह सचिव, कानून सचिव, मुख्य सचिव, विधि मंत्री और मुख्यमंत्री की अनुमतियां थी। हालांकि १२ नवम्बर को उनको तीसरी बार मिली इस फाइल के बाद भी वे संतुष्ट नहीं थे। फिर जब उनको इत्मीनान हुआ कि स्थानीय समाज उनको अंगीकृत कर लेगा अंत में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद १६१ के तहत उनकी रिहाई की स्वीकारोक्ति दे दी।