राज्यपाल सजायाफ्ता कैदियों को छोडऩे से नहीं कर सकते इनकार- ऐसे में अगर कैबिनेट की बैठक में रिहाई को लेकर कोई निर्णय लिया जाता है तो राज्यपाल उस निर्णय से इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि रिहाई को लेकर राज्यपाल निर्णय ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपाल को निर्देश नहीं दे सकती, इसलिए राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है।
– नलिनी के वकील ने कहा
वर्ष १९८० में मारु राम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि कोर्ट ने कहा है राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से नहीं बल्कि कैबिनेट के सुझाव के आधार पर इस मामले में कदम उठाना है। ऐसे में राज्यपाल मंत्रियों की परिषद के फैसले से बंधे हैं। राज्यपाल रिहाई में देरी तो कर सकते हैं लेकिन इससे इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सजायाफ्ता कैदी सरकार की २० वर्षीय योजना, जो एआईएडीएमके सरकार द्वारा वर्ष १९९४ में शुरू की गई थी, के तहत रिहाई के पात्र हैं। इस योजना के तहत हाईकोर्ट जाकर पिछले कुछ सालों में मैंने कई कैदियों को रिहा भी कराया है।
वर्ष १९८० में मारु राम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि कोर्ट ने कहा है राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से नहीं बल्कि कैबिनेट के सुझाव के आधार पर इस मामले में कदम उठाना है। ऐसे में राज्यपाल मंत्रियों की परिषद के फैसले से बंधे हैं। राज्यपाल रिहाई में देरी तो कर सकते हैं लेकिन इससे इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सजायाफ्ता कैदी सरकार की २० वर्षीय योजना, जो एआईएडीएमके सरकार द्वारा वर्ष १९९४ में शुरू की गई थी, के तहत रिहाई के पात्र हैं। इस योजना के तहत हाईकोर्ट जाकर पिछले कुछ सालों में मैंने कई कैदियों को रिहा भी कराया है।
नलिनी के वकील ने कहा
वर्ष १९८० में मारु राम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि कोर्ट ने कहा है राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से नहीं बल्कि कैबिनेट के सुझाव के आधार पर इस मामले में कदम उठाना है। ऐसे में राज्यपाल मंत्रियों की परिषद के फैसले से बंधे हैं। राज्यपाल रिहाई में देरी तो कर सकते हैं लेकिन इससे इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सजायाफ्ता कैदी सरकार की २० वर्षीय योजना, जो एआईएडीएमके सरकार द्वारा वर्ष १९९४ में शुरू की गई थी, के तहत रिहाई के पात्र हैं। इस योजना के तहत हाईकोर्ट जाकर पिछले कुछ सालों में मैंने कई कैदियों को रिहा भी कराया है।
वर्ष १९८० में मारु राम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि कोर्ट ने कहा है राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से नहीं बल्कि कैबिनेट के सुझाव के आधार पर इस मामले में कदम उठाना है। ऐसे में राज्यपाल मंत्रियों की परिषद के फैसले से बंधे हैं। राज्यपाल रिहाई में देरी तो कर सकते हैं लेकिन इससे इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सजायाफ्ता कैदी सरकार की २० वर्षीय योजना, जो एआईएडीएमके सरकार द्वारा वर्ष १९९४ में शुरू की गई थी, के तहत रिहाई के पात्र हैं। इस योजना के तहत हाईकोर्ट जाकर पिछले कुछ सालों में मैंने कई कैदियों को रिहा भी कराया है।