नई शिक्षा नीति के संशोधित ड्राफ्ट में कहा गया है कि जो छात्र पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाओं में से एक या अधिक भाषा बदलना चाहते हैं, वे ग्रेड 6 या ग्रेड 7 में ऐसा कर सकते हैं, जब वे तीन भाषाओं (एक भाषा साहित्य के स्तर पर) में माध्यमिक स्कूल के दौरान बोर्ड परीक्षा में अपनी दक्षता प्रदर्शित कर पाते हैं। पहले के ड्राफ्ट में समिति ने गैर हिंदी प्रदेशों में हिंदी की शिक्षा को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया था।
केंद्र सरकार ने कहा है कि नए ड्राफ्ट के तहत हिंदी अनिवार्य नहीं होगी। छात्र तीन में से कोई एक भाषा बदल सकते हैं। केंद्रीय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने मीडिया को बताया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय आकांक्षा।
यहां तक कि संसद को संबोधित करते हुए भी उन्होंने कहा था कि क्षेत्रीय मुद्दों को प्राथमिकता दी जाएगी क्योंकि क्षेत्रीय मुद्दे देश की ताकत को दिखाते हैं।
सदानंद गौड़ा ने इस मुद्दे पर विपक्ष पर राजनीति का आरोप लगाते हुए कहा, केवल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ भावनाओं को भड़काना उचित नहीं है। जहां तक हिंदी का सवाल है, इसे लागू करने को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है।
स्कूलों में तीन भाषा के फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने रविवार को स्पष्ट किया था कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।
उन्होंने कहा, हमें नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है। इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जाएगी, उसके बाद ही कुछ होगा। कहीं न कहीं लोगों को गलतफहमी हुई है।
इससे पहले डीएमके ने मसौदे का कड़ा विरोध किया था। तमिलनाडु सरकार ने मामले को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा कि वह दो भाषा फार्मूले को जारी रखेगी। डीएमके ने इस मसौदे को ठंडे बस्ते में डालने की मांग करते हुए कहा कि यह राज्य पर हिंदी को थोपने के समान है।
बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने पिछले दिनों तमिल में किए गए विभिन्न ट्वीट में कहा कि स्कूलों में तीन भाषा फार्मूले का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि वे हिंदी को एक अनिवार्य विषय बनाएंगे। बीजेपी सरकार का असली चेहरा उभरना शुरू हो गया है।
बीजेपी के सहयोगी एआईएडीएमके के नेताओं ने भी अब इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विरोध जताया था। सूबे के मंत्री केटी राजेंद्र बालाजी ने रविवार को कहा, हम देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की दो भाषा नीति में विश्वास करते हैं। ऐसे में हमारी पार्टी तीन भाषा फार्मूले के खिलाफ है और हम इसका विरोध करेंगे।
हम ऐसी किसी भी नीति का समर्थन नहीं करेंगे, जिसे जनता स्वीकार नहीं कर सकती। बता दें कि डीएमके प्रमुख एम के स्टालिन ने इसके विरोध में कहा था कि तीन भाषा फार्मूला प्राथमिक कक्षा से कक्षा 12 तक हिंदी पर जोर देता है। यह बड़ी हैरान करने वाली बात है और यह सिफारिश देश को बांट देगी।
स्टालिन ने तमिलनाडु में 1937 में हिंदी विरोधी आंदोलनों को याद करते हुए कहा कि 1968 से राज्य दो भाषा फार्मूले का ही पालन कर रहा है, जिसके तहत केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है।
उन्होंने केंद्र से सिफारिशों को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि यह तीन भाषा फार्मूले की आड़ में हिंदी को थोपना है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सांसद संसद में शुरू से ही इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे।