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मतदान प्रतिशत घटने से सरकार को बढ़त या नुकसान ?

locationचेन्नईPublished: Apr 20, 2019 04:57:26 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

– राज्य में किसी गठबंधन के पक्ष में नहीं थी लहर- प्रेक्षकों का मिला-जुला अनुमान

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मतदान प्रतिशत घटने से सरकार को बढ़त या नुकसान ?

चेन्नई. आम चुनाव के लिए तमिलनाडु में गुरुवार को मतदान हुआ। ७१.९० फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। आम चुनाव २०१४ की तुलना में मतदान प्रतिशत घटा है। पिछले चुनाव में ७३.६० प्रतिशत वोट पड़े थे। अकेले चुनाव लड़ रही एआईएडीएमके ने अन्य सभी गठबंधनों का सूपड़ा साफ करते हुए ३९ में से ३७ सीटें जीती थी। अधिक व कम वोटिंग के अपने मायने है जो परिस्थितियों के आधार पर मौजूदा सरकार के लिए सार्थक और बाधक दोनों हो सकते हैं। आम चुनाव में हुए मतदान को लेकर राजनीतिक प्रेक्षकों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिली है।
राजनीतिक विश्लेषक मालन मानते हैं कि ७२ फीसदी के करीब मतदान होना अच्छा संकेत है। यह इशारा है कि मतदाताओं का रुख किसी एक गठबंधन की तरफ हुआ है। अब यह गठबंधन कौनसा है यह कहना मुश्किल होगा। संभवत: यह डीएमके गठबंधन के पक्ष में भी हो सकता है। लेकिन राज्य में डीएमके के पक्ष में लहर तो दिखाई नहीं दी।
एआईएडीएमके के एक नेता की मानें तो वोटिंग उनके गठबंधन के खिलाफ हुई है। उनके अनुसार चुनाव प्रचार के पुराने तरीके अब कारगर नहीं है। परम्परागत मतदाताओं की जगह अब नए मतदाताओं ने ली है। १८ से तीस आयुवर्ग के मतदाताओं की संख्या बढ़ी है जिनकी सोच फिलहाल परिवर्तन को लेकर है। इसका फायदा स्वाभाविक रूप से डीएमके गठबंधन को मिलेगा।
मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर सी. लक्ष्मणन के मुताबिक चुनाव प्रचार की शुरुआत में डीएमके खेमे में घबराहट दिखी। इसकी वजह एआईएडीएमके गठबंधन थी। लेकिन बाद में सोशल मीडिया पर हुए प्रचार और मतदान के पूर्व डीएमके सांसद व प्रत्याशी कनिमोझी के आवास पर छापे से मतदाताओं की सोच पर असर पड़ा होगा। कमल हासन की पार्टी बेअसर रहेगी। जनता अब शायद फिल्मी हस्तियों को राजनीति में उतनी जगह नहीं देगी जितनी उनको पहले हासिल थी।
चुनाव विश्लेषक जॉन आरोग्य सामी का कहना है कि राज्य के मतदाता मन के राजा हैं। राज्य में किसी भी गठबंधन के पक्ष में लहर नहीं थी। धर्म के नाम पर लोग नहीं बंटे हैं। मतदाता सूची में नाम नहीं होने व पैतृक शहर जाकर वोटिंग के लिए बस नहीं मिलने से कई लोग मतदान से वंचित रह गए। जोन वार हमें मतदान प्रतिशत को देखना होगा जहां जातिगत वोट का असर दिखाई दिया है।
अमूमन अधिक वोटिंग इस बात का संकेत देती है कि सत्ता के खिलाफ असंतोष की लहर है लेकिन तमिलनाडु में हुए मतदान से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है। मतदान कम होने की कई वजह भी रही ऐसे में उक्त फार्मूला मौजूदा स्थिति में लागू होता नहीं दिखाई देता।

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