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निर्माणशाला, संस्कारशाला व धर्म की पाठशाला है ज्ञानशाला

locationचेन्नईPublished: Sep 03, 2018 01:02:32 pm

Submitted by:

Santosh Tiwari

जानवर, जानवर की तरह ही पैदा होता है और जानवर की तरह ही मर जाता है लेकिन आदमी, आदमी की तरह ही पैदा होता है और बहक जाए तो पशु की तरह मर सकता है। यदि संभल जाए तो राम, महावीर की तरह भगवान भी बन कर आदर्श प्रस्तुत कर सकता है। आदमी तो इतना भी गिर सकता है कि जानवर को भी शर्म आ जाए।

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निर्माणशाला, संस्कारशाला व धर्म की पाठशाला है ज्ञानशाला

चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में चलने वाली ज्ञानशाला एक सुन्दर उपक्रम है। ज्ञानशाला एक निर्माणशाला, संस्कारशाला एवं धर्म की पाठशाला है। कितने बच्चे ही ज्ञानार्थी के रूप में ज्ञानशाला से जुड़े हैं। एक समाज के लिए यह आवश्यक होता है कि उसके बच्चों में अच्छे संस्कार और धार्मिक ज्ञान का सृजन हो। जिस समाज के बच्चों में अच्छे संस्कार होते हैं, वही समाज अच्छा बन सकता है और उसका भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। ज्ञानशाला तेरापंथ समाज की मूल (जड़) को सिंचन देने वाली है। तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में स्थानीय सभाओं द्वारा संचालित ऐसे उपक्रम हैं जिनके माध्यम से भावी पीढ़ी को आध्यात्मिक ज्ञान देने के साथ उसके संस्कारों के विकास का प्रयास किया जाता है। ज्ञानार्थियों, प्रशिक्षकों और व्यवस्थापकों का संतुलन होना चाहिए। बच्चों की चेतना निर्मल हो, उनमें संस्कारों का अच्छा विकास हो ऐसा प्रयास होना चाहिए।
उन्होंने कहा ज्ञानशाला धर्म की पाठशाला है जहां कितने ही प्रशिक्षक निस्वार्थ भाव से ज्ञानार्थियों को धर्म की शिक्षा और संस्कार की शिक्षा देने का प्रयास करते हैं। इसके कुशल संचालन में प्रशिक्षक, व्यवस्थापक और ज्ञानार्थियों तीनों का संतुलन होना चाहिए। जहां ज्ञानशालाएं न हों वहां नई स्थापना की संभावनाओं का प्रयास, जहां स्थापित हो वहां के ज्ञानार्थियों की संख्या बढ़ाई जाए। प्रशिक्षकों को भी प्रशिक्षण दिया जाने के साथ ही ज्ञानशाला द्वारा बच्चों को संस्कारित बनाने और उनकी चेतना में निर्मलता के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए। आचार्य ने ‘मुनिपत के व्याख्यान’ क्रम को भी आगे बढ़ाया। उन्होंने सात सितम्बर से आरम्भ होने वाले पर्यूषण महापर्व के साथ-साथ 14 सितम्बर को संवत्सरी मनाए जाने के बारे में बताया।
इस मौके पर चेन्नई ज्ञानशाला के व्यवस्थापक सुरेश बोहरा ने विचार व्यक्त किए। चेन्नई की सभी 22 ज्ञानशाओं से आए विद्यार्थियों ने भी आचार्य के समक्ष प्रस्तुति दी। तत्पश्चात् गीत का भी संगान किया।
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सकारात्मक विचार व्यक्ति को पशुपति बना देते हैं
चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा व्यक्ति को चाहिए कि वह फूलों की तरह सुगंध बांटे एवं सदाचार का पालन करे। जानवर, जानवर की तरह ही पैदा होता है और जानवर की तरह ही मर जाता है लेकिन आदमी, आदमी की तरह ही पैदा होता है और बहक जाए तो पशु की तरह मर सकता है। यदि संभल जाए तो राम, महावीर की तरह भगवान भी बन कर आदर्श प्रस्तुत कर सकता है। आदमी तो इतना भी गिर सकता है कि जानवर को भी शर्म आ जाए। व्यक्ति भले ही आचरण से ऊपर न उठ पाए लेकिन विचारों में उच्चता रखनी चाहिए। ऊर्जा दो प्रकार की होती है-सकारात्मक एवं नकारात्मक। इसी प्रकार विचार भी दो प्रकार के होते हैं-प्लस और माइनस। सकारात्मक विचार पशुपति एवं नर से नारायण बना देता है जबकि नकारात्मक विचार व्यक्ति को पशु से भी बदतर बना देता है। इन्सान से हैवान बना देता है। जब व्यक्ति धर्म विरोधी होता है तो निर्दयी हो जाता है और जब धार्मिक होता है तो प्रेम व करुणा से भर जाता है। आदमी का पूरा जीवन उसके अच्छे-बुरे विचारों पर निर्भर करता है।
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