बगुला बना यक्ष हुआ शापमुक्त!
क डलूर जिले के काट्टमण्णारकोईल के तिरुनारयूर में भगवान शिव का श्री सौंदर्येश्वरर मंदिर स्थित है। शैव संत
चेन्नई। कडलूर जिले के काट्टमण्णारकोईल के तिरुनारयूर में भगवान शिव का श्री सौंदर्येश्वरर मंदिर स्थित है। शैव संत तिरुज्ञानसंबंदर के थेवारम में इस मंदिर का वर्णन मिलता है। कावेरी के उत्तरी तट पर यह 33वां शिव मंदिर है। वैकासी तिरुवादुरै और तेरह दिवसीय राजराजन उत्सव का आयोजन मंदिर में बड़ी धूमधाम से होता है। पोला पिल्लैयार भगवान गणेश की मूर्ति जो मंदिर में प्रतिष्ठित है स्वयंभू है।
पौराणिक कथा
अपने क्रोध के लिए परिचित दुर्वासा ऋषि एक बार भगवान शिव की अटूट तपस्या में लीन थे। गंधर्व लोक के एक यक्ष ने उनकी तपस्या भंग करने का जतन किया। ऋषि ने उसे नारै पक्षी (बगुला) बना दिया। दुर्वासा ने यक्ष की क्षमायाचना को भी स्वीकार नहीं किया। फिर उन्होंने गंधर्व को प्रायश्चित करने को कहा।
गंधर्व ने भगवान शिव से क्षमायाचना की। भोलेनाथ ने गंधर्व से कहा कि चूंकि वह एक पक्षी बन गया है इसलिए प्रतिदिन काशी से गंगाजल लाकर उनके शिवलिंग का अभिषेक करे। शिव के बताए मार्ग पर बगुला रोज काशी तक उड़ता और गंगाजल लाकर अभिषेक करता इस तरह वह शापमुक्त हुआ। चूंकि नारै पक्षी को यहां शाप से मुक्ति मिली इसलिए यह क्षेत्र नारयूर कहलाया।
विशेष आकर्षण
नम्बी आंडर नम्बी जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने शैव काव्य साहित्य थेवारम को कीड़ों से बचाया और उनका संपादन किया, ने बचपन में अपने पिता को पोला स्तंभ विनायक को नैवेद्य भेंट करते देखा। वे यह जानना चाहते थे कि क्या भगवान उनके पिता द्वारा लगाए भोग को ही स्वीकार करेंगे अथवा उनका नैवेद्य भी स्वीकार होगा। उन्होंने गणेशजी को भोग लगाया और जोर देने लगे कि वे इसे ग्रहण करें। गणपति को शांत देखकर नम्बी विलाप करने लगे। वे अपना सिर गणेश के चरणों में पर पटक-पटक कर रोने लगे।
उनकी भक्ति से भगवान गणेश द्रवित हो गए और नम्बी के नैवेद्य का उपभोग किया। राजा राजराजन चोलन को इस चमत्कार पर विश्वास नहीं हुआ। वे विविध नैवेद्यों के साथ नम्बी से मिले और गणेशजी को भोग लगाने को कहा। लेकिन इस बार गणपति गंभीर बने रहे। नम्बी ने फिर इरटै मणिमालै नाम की भक्तिकाव्य की रचना कर भगवान गणेश का मन जीत लिया। पोला पिल्लैयार ने सभी के समक्ष नैवेद्य ग्रहण कर भक्त को कृतार्थ किया। पूरा शैव सम्प्रदाय नम्बी का ऋणी है क्योंकि अगर वे नहीं होते तो थेवारम भक्ति साहित्य कीड़ों के भेंट चढ़ जाता। इसलिए मंदिर में नम्बी और राजराज चोलन की मूर्तियां स्थापित है।