एआईक्यू सीटों में ओबीसी छात्रों को आरक्षण प्रदान करने में किसी प्रकार का कानूनी रोक नहीं है की ओर इशारा करते हुए बेंच ने कहा यह तय कानून के मद्देनजर आरक्षण प्रदान करने का सकारात्मक आदेश नहीं है क्योंकि मौलिक अधिकार प्रभावित होने तक अदालतें सरकार के नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। कोर्ट ने कहा आरक्षण कानूनी और मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने राज्य सरकार, डीएमके, एआईएडीएमके और पीएमके समेत अन्य राजनीतिक दलोंं द्वारा केंद्र के मेडिकल प्रवेश के लिए एआईक्यू में ओबीसी आरक्षण प्रदान नहीं करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आदेश पारित किया।
याचिका का निपटारा करते हुए कोर्ट ने यह भी पाया कि मेडिकल प्रवेश के लिए एआईक्यू सीटों में ओबीसी आरक्षण प्रदान करने के लिए केंद्र किसी भी प्रकार का कानून पारित कर सकता है। राज्य के एडवोकेट जनरल विजय नारायण ने कहा कि एमसीआई कहता है कि मेडिकल कॉलेजों में सीटों का आरक्षण राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रचलित कानूनों के अनुसार है। यह बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि केंद्र इस बात से अवगत है कि तमिलनाडु में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण 69 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि राज्य में उच्च प्रतिशत आरक्षण की आवश्कता है तो आरक्षण 50 फीसदी से अधिक हो सकता है। डीएमके की ओर से वरिष्ठ वकील पी. विल्सन ने कहा केंद्र सरकार द्वारा लगातार ओबीसी के साथ भेदभाव जारी है। राज्य ने पिछले चार सालों में 3580 पीजी सीटों का आत्मसमर्पण किया हैं जिसमें 2729 सीट ओबीसी के थे।