यह जनहित याचिका पशु प्रेमी मुरलीधरन ने लगाई थी कि वन विभाग को रोका जाए कि वह केंद्रीय चर्म अनुसंधान संस्थान (सीएलआरआइ) व अन्य क्षेत्रों से चित्तीदार हिरणों को विस्थापित नहीं करे। याची का कहना था कि गिण्डी राष्ट्रीय उद्यान में ही ४०० काले और २ हजार चित्तीदार हिरणों के अलावा २४ सियार व विविध प्रजातियों के सांप हैं। इस उद्यान के पास ही राजभवन, आइआइटी, अण्णा विवि और सीएलआरआइ में चित्तीदार हिरण दिखाई देते हैं जो वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास है।
वन विभाग ने मद्रास उच्च न्यायालय को बताया था कि पिछले पांच सालों में महानगर के उपनगरीय क्षेत्रों में ४९७ चित्तीदार (स्पॉटेड) हिरणों की मौत हुई है। उनके अनुसार इन मौतों की वजह से उपनगरों में निर्माण कार्य बढऩा, आवारा कुत्तों का हमला, बिजली की लाइन, ठोस कचरे का फैलाव, खाद्य अपशिष्ट, सीवेज का पानी और वाहनों से टक्कर आदि है। एक हिरण का पोस्टमार्टम करने पर उसके पेट से छह किलो प्लास्टिक निकला था।
हाईकोर्ट की पीठ ने माना कि नियम व कानून की सख्ती से पालना नहीं कराई जाती है। वन्य जीव सुरक्षा कानून, १९७२ व वन्य जीव संरक्षण नियम, १९७५ के दोषी लोग आराम से घूमते हैं। अब समय आ चुका है कि आवधिक तौर पर कानून लागू करने वाले अधिकारियों को इनके प्रावधानों से अवगत कराया जाए। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चित्तीदार हिरणों के विस्थापन की प्रक्रिया में कोई चूक नहीं हुई है। लेकिन वन विभाग को हिरणों को पकडऩे अथवा फांसने संबंधी दिशा-निर्देश तय कराने चाहिए जो कि वेब पृष्ठों पर उपलब्ध है और इन पर कई किताबें भी उपलब्ध हैं।