बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों का कहना है कि वे किराया कुछ दिन तक बिना बढ़ाए रह सकते हैं लेकिन ज्यादा वक्त नहीं। एक 30 बेड वाले अस्पताल में एक दिन में 12,000-15000 रुपए औसतन खर्च किए जाते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष डॉ टी.एन.रविशंकर का कहना है कि एक महीने की कीमत 4.5 लाख तक जा सकती है। ऐसे में छोटे Hospitals को इसे झेल पाना मुश्किल हो जाता है। इस बोझ को patients पर डालना ही पड़ता है। इसका मतलब है कि बड़े अस्पताल भी ज्यादा वक्त तक बढ़ती कीमतों का दबाव नहीं झेल सकेंगे।
प्राइवेट Hospitals को सप्लाई करने वाले water tankers की कीमत भी दोगुनी हो चुकी है। 200 बेड वाले वॉलंटरी हेल्थ सर्विसेज ने बताया है कि पानी का बिल 2 लाख तक पहुंच गया है। फरवरी तक वे बोरवेल सप्लाई के साथ 45 टैंकर पानी खरीदते थे। अब Borewell सूख चुके हैं और हर दिन पानी खरीदना पड़ता है। कुछ दिन पहले टैंकर ऑपरेटरों ने कहा कि उन्हें पानी लेने के लिए दूर जाना पड़ता है। इसलिए, 12,000 लीटर पानी की कीमत 12 से बढ़ाकर 2000 रुपये कर दी जबकि पानी की क्वॉलिटी खराब हो गई है। अब इलाज की कीमत पर भी असर पड़ेगा। मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के डीन ने सभी फंड पानी खरीदने में लगा दिए हैं। Hospitals में कई गैलन पानी ऑपरेशन थिएटर, सर्जिकल उपकरणों और डॉक्टरों के हाथों को स्टराइल रखने के लिए इस्तेमाल होता है।