न्यायाधीश एन. कृपाकरण और न्यायाधीश अब्दुल कुद्दोस की न्यायिक पीठ ने सरकार से पूछा कि क्यों नहीं आवास की कुलांचें मारती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए ऐसे उपाय किए जाते ताकि देश के हर परिवार को आवास नसीब हो सके।
न्यायिक पीठ ने स्वत: संज्ञान प्रविधि के तहत केंद्रीय आवासन और वित्त मंत्रालय को इस याचिका में पक्षकार बनाया तथा सवालों की झड़ी लगाते हुए उनके जवाब पेश करने को कहा। पीठ ने पूछा कि क्या आवासन की बुनियादी सुविधा तमिलनाडु सहित देशभर के परिवारों को उपलब्ध है। जब केंद्र सरकार के सबको आवास की नीति का मिशन हासिल किया जाना है तो देश में आबादी और आवास का राष्ट्रीय और राज्यीय अनुपात क्या है?
न्यायिक पीठ ने केंद्र और राज्य के प्राधिकारियों से जवाब मांगा कि क्या हाशिये पर बसे लोगों, आर्थिक रूप से अशक्त वर्ग तथा एससी-एसटी समुदाय को आवास उपलब्ध कराने की कोई विशेष योजना है? इस प्रश्न के साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि कितने परिवारों के पास एक से अधिक घर हैं?
बेंच ने सुझावों में कहा कि जब तक सभी को आवास का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता तब तक क्यों नहीं सरकार परिवारों तथा व्यक्तियों को एक से अधिक घर, प्लॉट और फ्लैट खरीदने से पाबंद करती? दूसरा घर खरीदने का उत्साह समाप्त करने के लिए क्यों नहीं स्टाम्प शुल्क को १०० प्रतिशत अधिक कर दिया जाता? क्यों नहीं सरकार उन परिवारों पर जो एक से अधिक घर खरीदते हैं की वैधानिक देयता मसलन, सम्पत्ति कर, बिजली शुल्क, जल व सीवेज शुल्क को १०० प्रतिशत तक बढ़ा देती?
हाईकोर्ट ने उक्त उपायों के अलावा एक और महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि क्यों नहीं प्राधिकारी एनआरआइ को भारत में आवास खरीदने से पाबंद करते ताकि आवासीय कीमतों को नीचे लाया जा सके। न्यायालय ने अपने सुझावों पर तर्क दिया कि लाखों लोग फुटपाथों, सड़कों, सीमेंट के पाइपों, झुग्गियों, पेड़ के नीचे और जलस्रोतों के तट पर जिन्दगी बसर कर रहे हैं। ये लोग बिना शरणस्थली, बुनियादी सुविधाओं व सुरक्षा के जीवन काट रहे हैं। यह सही है कि केंद्र सरकार ने वर्तमान में निर्णय किया है कि सभी परिवारों को आवास दिया जाएगा। यह लक्ष्य यथाशीघ्र हासिल किया जाना चाहिए। यह तभी संभव होगा जब एक से अधिक आवासीय इकाइ रखने वाले लोगों पर पाबंदी लगाई जाए।
हाईकोर्ट ने उक्त सुझाव तमिलनाडु आवासन मंडल की एक चुनौती याचिका पर दिए। यह याचिका कोयम्बत्तूर के तूडीयलूर और वेलकीनार में ३६९ एकड़ निजी जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ एकल जज के निर्णय पर थी।