टीबी रोग की पहचान होगी आसान, वैज्ञानिकों ने खोजा नया तरीका
चेन्नईPublished: Feb 23, 2023 01:13:24 pm
- नई टेक्नोलॉजी का विकास करेगा आइआइटी मद्रास
-यह टेक्नोलॉजी प्रचलित टीबी जांच की तुलना में तेज और सस्ती होगी


टीबी रोग की पहचान होगी आसान, वैज्ञानिकों ने खोजा नया तरीका
चेन्नई.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आइआइटी मद्रास) यूरीन जांच से क्षय रोग का पता लगाने या निदान विकसित करने के लक्ष्य से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जेनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ साझेदारी कर रहा है।
मूत्र से टीबी जांच के लिए जिस प्रोडक्ट की परिकल्पना की गई है वह विभिन्न रोगों के लिए उपलब्ध मौजूदा डायग्नोस्टिक किट जैसे ब्लड ग्लूकोज मॉनिटर की तुलना में तेज और बहुत सस्ता होगा यह अनुमान है। इस प्रोजेक्ट के लिए जेनरल इंश्योरेंस ने सीएसआर के तहत आर्थिक आधार दिया है और इसका लाभ मुख्य रूप से राज्य और केंद्र सरकारों के स्वास्थ्य विभागों के अलावा प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्रों को मिलेगा।
सीएसआर की इस साझेदारी के लिए एक सहयोग करार पर प्रोफेसर महेश पंचग्नुला, डीन (पूर्व छात्र और कॉर्पोरेट संबंध), आइआइटी मद्रास और मधुलिका भास्कर, निदेशक और महाप्रबंधक, जेनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने हस्ताक्षर किए। आइआइटी मद्रास अब तक कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत 180 से अधिक संस्थाओं से साझेदारी करने और 200 से अधिक प्रोजेक्ट के लिए 250 करोड़ रु. जुटाने में सफल रहा है।
प्रोफेसर महेश पंचाग्नुला ने कहा क्षय रोग की शुरुआत में ही उसका पता लगाने का यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि यदि जांच का काम तेजी से हो और यह सेंसिटिव (सटीक) हो तो टीबी के संदिग्ध मामलों में से वास्तविक मामलों की तुरंत पहचान संभव है। इससे समय पर उपचार होगा और रोग नहीं फैलेगा।
इस सहयोग को लेकर उत्साहित जेनरल इंश्योरेंस की निदेशक और महाप्रबंधक मधुलिका भास्कर ने कहा टेक्नोलॉजी में इनोवेशन और विकास को बढ़ावा देने के लिए उद्योग और शिक्षा जगत के बीच परस्पर सहयोग जरूरी है।
आइआइटी मद्रास स्थित बायोसेंसर लैबरोटरी द्वारा एक अभिनव प्लास्मोनिक फाइबर ऑप्टिक अवशोषक बायोसेंसर (पी-एफए8) टेक्नोलॉजी का विकास किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने मूत्र में क्षय रोग के एक सुस्पष्ट बायोमार्कर जिसे ‘उपोआबिनोमन्नन (एलएएम)’ कहते हैं उसका पता लगाने के लिए लैब में प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट दिया है। इसके साथ ही फाइबर ऑप्टिक सेंसर प्रोब और रीडआउट डिवाइस की टेक्नोलॉजी को डिजाइन और विकसित किया गया है और यह टेक्नोलॉजी भारत और अमेरिका स्थित दो स्टार्ट-अप को प्रदान की गई है। टीबी का पता लगाने वाले इसे यूरिनरी मार्कर के विकास का अगला कदम टीबी के रोगी के सैम्पल के साथ पी-एफएबी डायग्नोस्टिक टेक्नोलॉजी का व्यवस्थित क्लिनिकल वैलिडेशन करना है। इस शोध परियोजना की दूरदृष्टि यह अत्यावश्यक कार्य करने और फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इस टेक्नोलॉजी का लाभदायक उपयोग करने की है।
प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट का विकास करेगा आइआइटी मद्रास
आइआइटी मद्रास मूत्र से टीबी की जांच के लिए प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट का विकास करेगा। इसकी कार्य प्रक्रिया और टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप या डायग्नोस्टिक किट निर्माताओं को प्रदान करेगा। आईआईटी मद्रास ने फाइबर ऑप्टिक सेंसर प्रोब फैब्रिकेशन और ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक रीडआउट डिवाइस टेक्नोलॉजी का विकास और पेटेंट कर लिया है। बौद्धिक संपदा का लाइसेंस यह प्राप्त करने की इच्छुक पार्टियों के उपयोग को देखते हुए प्रदान किया जाएगा। इस शोध कार्य से क्लिनिकल स्तर पर प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट मिलेगा। दो से तीन वर्षों में यह प्रोडक्ट उपयोग के लिए तैयार होगा।