जनता के बीच लोकप्रिय शासक के बारे में क्या ऐसी प्रतिक्रिया उचित है : हाईकोर्ट
मदुरै. मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै खण्डपीठ ने फिल्मकार पी. रणजीत से प्रश्न किया कि जनता में लोकप्रिय और चर्चित शासक के बारे में उनके द्वारा की गई टिप्पणी क्या उचित है? न्यायालय ने यह प्रश्न फिल्म निर्देशक के राजाराज चोलन के शासनकाल पर की गई टिप्पणी को लेकर किया।
तंजावुर जिले के कुंभकोणम के निकट तिरुपनंताल नीलपुली संगठन के संस्थापक उमर फारुख की बरसी पर ५ जून को आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए पी. रणजीत ने कहा था कि राजाराज चोल का शासन जातिगत व्यवस्था की पृष्ठभूमि में अंधकारमय था। उनके इस बयान की कड़ी आलोचना व निन्दा हो रही है।
हिन्दू मक्कल कच्ची के पूर्व जिला सचिव बाला ने सोमवार को तिरुविडैमरुदूर पुलिस थाने में रणजीत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई कि उनका बयान युवाओं को उकसाने, जातिगत भेदभाव बढ़ाने व देश की सम्प्रभुता के खिलाफ है। लिहाजा उन पर रासुका लगाया जाना चाहिए।
इस शिकायत पर पुलिस ने भादंसं की धाराओं १५३ और १५३ (ए) के तहत मुकदमा दर्ज किया। मामला दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी टालने के लिए पी. रणजीत ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका लगाई कि उनका बयान इतिहास पर आधारित था।
याची ने कहा कि उनका भाषण बदनीयती से नहीं था। इतिहास की कई पुस्तकों में जो उल्लेख मिला है उसी आधार पर वे बोले। उनके भाषण को सोशल वेबसाइटों पर गलत तरीके से पेश किया गया है।
न्यायालय ने सुनवाई के दौरान निर्देशक से पूछा कि जब भाषण देने के लिए अपार विषयवस्तु हैं तब क्या लोकप्रिय शासक के बारे में इस तरह की टिप्पणी सही है? देवदासी की प्रथा का उन्मूलन बहुत पहले ही हो चुका है लेकिन अब उसके जिक्र की क्या जरूरत थी?
न्यायालय ने कहा कि आज जैसे सरकार उसकी जरूरत के अनुसार और परियोजनाओं के लिए जमीन अवाप्त करती है उसी तरह उस जमाने में शासकों ने भूखण्डों को अपने कब्जे में लिया। याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने अग्रिम जमानत पर आपत्ति जताई। साथ ही न्यायालय को विश्वास दिलाया कि अगले बुधवार तक फिल्म निर्देशक रणजीत को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।