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श्रवण के साथ चिंतन मनन व अनुशीलन भी हो

locationचेन्नईPublished: Mar 17, 2019 06:20:21 pm

Submitted by:

Santosh Tiwari

जयधुरंधर मुनि ने कहा भगवान महावीर की वाणी जीवन उपयोगी, सुप्त आत्माओं को जगाने वाली, धर्म विमुख को धर्म सन्मुख करने वाली, पतित पावनी, पापविनाशिनी, ज्ञान प्रदायिनी, सर्वहितकारिणी एवं अमित शांति देने वाली है

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श्रवण के साथ चिंतन मनन व अनुशीलन भी हो

चेन्नई. वडपलनी जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा भगवान महावीर की वाणी जीवन उपयोगी, सुप्त आत्माओं को जगाने वाली, धर्म विमुख को धर्म सन्मुख करने वाली, पतित पावनी, पापविनाशिनी, ज्ञान प्रदायिनी, सर्वहितकारिणी एवं अमित शांति देने वाली है। जिनवाणी श्रवण का अवसर प्राप्त होना भी दुर्लभ है। शास्त्र श्रवण से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान के चार मुख्य साधन होते हैं देखना सुनना पढऩा और अनुभव करना।

सुनने पर ही साधक के भीतर हित का विवेक जाग्रत होता है। व्यक्ति को कानों से ही नहीं प्राणों से सुनना चाहिए। सुनकर ही कल्याण और पाप का मार्ग जाना जा सकता है। श्रवण के साथ चिंतन मनन एवं अनुशीलन भी होना चाहिए तभी वह जीवन के कण कण में पहुंचकर शक्ति देता है। उन्होंने तीन प्रकार के श्रोताओं का वर्णन करते हुए कहा कि कुछ श्रोता एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल देते हैं। दूसरे मध्यम श्रेणी के श्रोता कमल के समान सद्वचन रूप बूंदों को कुछ देर तक टिका कर रखते हैं। उत्तम श्रोता वही होता है जो सुनने के बाद उसे आचरण में लाता है। शास्त्र श्रवण से अवगुण रूपी विष निकल जाता है। इस मौके पर मंत्री मंगलचंद भंसाली, अध्यक्ष प्रकाशचंद बोहरा भी उपस्थित थे।

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