आखिर हाईकोर्ट ने क्यों जताया अंदेशा
हाईकोर्ट का यह विचार मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के शिक्षक पर लगे यौन उत्पीडऩ के आरोप को खारिज करने की याचिका पर था। याची पर कॉलेज में प्राणी विज्ञान की तीसरे वर्ष की 34 छात्राओं के साथ शैक्षणिक भ्रमण के दौरान यौन उत्पीडऩ का आरोप लगा था। उसने इस सिलसिले में कॉलेज की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस को खारिज करने की अर्जी लगाई थी। न्यायाधीश एस. वैद्यनाथन ने अर्जी को ठुकराते हुए कहा अभिभावकों और खासकर छात्राओं की आम सोच हो चली है कि क्रिश्चियन शिक्षण संस्थानों की सह-शिक्षण व्यवस्था उनके भविष्य के लिए असुरक्षित है। न्यायाधीश ने कहा, ईसाई मिशनरी हमेशा किसी न किसी मसले को लेकर मतभेदों में घिर जाते हैं। मौजूदा दौर में उन पर धर्म परिवर्तन में लिप्तता के आरोप लग रहे हैं। हालांकि उनकी ओर से दी जा रही शिक्षा अव्वल है लेकिन नैतिकता का जो पाठ पढ़ाया जाता है वही यक्ष प्रश्न है।
पुरुषों की भी सुरक्षा जरूरी
महिला सुरक्षा की खातिर बने कानूनों के दुरुपयोग पर जज वैद्यनाथन ने विचार रखे कि अब समय आ गया है जब सरकार इन काूननों में संशोधन लाए ताकि पुरुषों की भी हिफाजत हो सके। यह सही समय है कि सरकार इन कानूनों में उचित संशोधन करे ताकि इनका दुरुपयोग नहीं हो। पुरुषों को सबक सिखाने की प्रबल इच्छा की वजह से महिलाएं इन कानूनोंं के गलत उपयोग का विकल्प चुन लेती हैं। फिर वे झूठे वाद दायर करती हैं। दहेज निरोधी कानून (498-ए) में इस तरह की प्रवृत्तियां देखी जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तो इसे ‘लीगल टेरेरिज्मÓ कहा है। न्यायालय ने मौजूदा याचिका जो कॉलेज के सहायक प्रोफेसर सैम्युअल टेनिसन ने दायर की है पर वादी की दलीलों को नामंजूर कर दिया। जज ने यौन उत्पीडऩ के आरोपों की जांच के लिए कॉलेज द्वारा गठित आंतरिक जांच समिति के निष्कर्ष तथा जुटाए गए तथ्यों को निरस्त करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा इसमें प्रकृति के न्याय सिद्धांत का उल्लंघन नहीं हुआ है।