लेकिन सांताकुलम के इंस्पेक्टर ने डॉक्टरों को स्वास्थ्य प्रमाणपत्र देने के लिए मजबूर किया। इतना ही नहीं बल्कि दोनों को मजिस्टे्रट के सामने न्यायिक मजिस्टे्रट के घर ले जाया गया तो मजिस्टे्रट से 50 मिटर की दूरी पर ही खड़ा किया गया था और न्यायिक हिरासत में लेने से पहले उनके चारो ओर पुलिसकर्मी तैनात थे। ऐसी परिस्थिति में पुलिसकर्मी, मजिस्टे्रट, जिसने न्यायिक हिरासत में भेजा था, मेडिकल अधिकारी, जिन्हें सही से पिता पुत्र के स्वास्थ्य और शरीरिक फिटनेस को देखना चाहिए था, सामूहिक रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि तत्थ्यों और परिस्थितियों को देख कर लगता है कि पुलिस ने संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और प्रतिष्ठा के अधिकार समेत बुनियादी मानव अधिकारों की अवहेलना की है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गिरफ्तारी को लेकर निर्धारित दिशानिर्देशों का पुलिस अधिकारियों ने उल्लंघन किया है। कनिमोझी ने आरोप लगाया कि राज्य में पुलिस कस्टडी में मौत की लगभग 15 घटनाएं हो चुकी है और एक भी मामले में जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट दायर नहीं की गई है। मामले को गंभीरता से लेकर इसे ध्यान में रखते हुए एनएचआरसी को आवश्यक निर्देश जारी करने चाहिए, ताकि आगे इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।