ंयह मंदिर सोलहवीं शताब्दी का बताया गया है। मंदिर में मूल मूर्ति भगवान विजयवरदर की है। देवी लक्ष्मी विजयवल्ली तायार नाम से प्रतिष्ठित थी। इसके अलावा मंदिर परिसर में वेणुगोपाल स्वामी, राधा-रुक्मिणी, आलवार संतों के अलावा विष्णुवाहन गरुड़ की सन्निधि थी। फिलहाल गरुड़ के अलावा अन्य कोई सन्निधियां दिखाई नहीं देती। इनकी जगह झाडि़य़ों और वनस्पतियों ने ले ली है। मंदिर के इतिहास की जानकारी लेने पर पता चलता है कि यहां भीतरी गलियारे में विजय पुष्करिणी और बाहर परिधि में कमलतीर्थ हुआ करता था। इन दोनों तीर्थकुण्डों का नामो-निशान नहीं दिखाई देता। शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण बाबूरायर ने कराया था। इसी वजह से इस क्षेत्र का नाम भी बाबूरायनपेट्टै पड़ा।
तीन साल पहले हुआ बालालयम
मंदिर के संरक्षक परिवार के सदस्यों के बीच खींचतान का ग्रहण इस मंदिर को लगा। तीन साल पहले तक मंदिर की पूजा-आराधना करने वाले पुजारी ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि इस मंदिर का निर्माण संरक्षक रहे नागराजरायन के पूर्वजों ने कराया था। कई सालों तक उनके परिवार के सदस्यों ने इस मंदिर की पूजा अर्चना की लेकिन हमें कई सालों तक मासिक वेतन तक नहीं मिला। परिवार में उलझन बढऩे के बाद ३ साल पहले बालालयम (एक परिपाटी जिसके तहत गर्भगृह की मूल मूर्ति को उस स्थान से अन्यत्र रख दिया जाता है।) संस्कार किया गया तब से मंदिर बंद है। अब इसका जीर्णोद्धार करने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए।