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खण्डहर बन गया 550 साल पुराना मंदिर!

locationचेन्नईPublished: May 16, 2018 08:57:50 pm

Submitted by:

P S VIJAY RAGHAVAN

कांचीपुरम जिले में सैकड़ों मंदिर है जिनकी अपनी विशिष्टता और धार्मिक महत्व है। कई मंदिरों में नैत्यिक विधि-विधान हो रहे हैं तो कई मंदिरों में दो वक्त क

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कांचीपुरम जिले का विजयवरदराज स्वामी मंदिर

चेन्नई/पी. एस. विजयराघवन. कांचीपुरम जिले में सैकड़ों मंदिर है जिनकी अपनी विशिष्टता और धार्मिक महत्व है। कई मंदिरों में नैत्यिक विधि-विधान हो रहे हैं तो कई मंदिरों में दो वक्त की आरती करने वाला कोई नहीं है। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर अचरपाक्कम से करीब 10 किमी की दूरी पर बाबूरायनपेट्टै गांव में स्थित मंदिर विजयवरदराज स्वामी मंदिर है। यह मंदिर अब केवल नाममात्र का रह गया है। तीन साल से मंदिर में न तो पूजा हुई और न ही आरती।
व्यापक संरचना
चेन्नई से इस मंदिर की दूरी करीब १२० किमी है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार (अद्र्धनिर्मित) से गर्भगृह तक की दूरी करीब २५० मीटर होगी। टूट-फूट चुका राजगोपुरम पांच मंजिला है और मरम्मत की राह तक रहा है। इसके भीतर गर्भगृह में विजयवरदराज स्वामी विराजित हैं जिनके दर्शन पिछले तीन सालों से नहीं हो रहे। स्थानीय लोगों ने भी इस मंदिर की सुध नहीं ली। मंदिर की भीतरी संरचना के स्तम्भ भगवान भरोसे टिके हैं। गर्भगृह में प्रवेश का द्वार पर जंजीरों समेत तीन ताले जड़ दिए गए हंै। साथ की दीवार पर मंदिर से जुड़े विवाद की सूचना तमिल में चस्पा है।

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मंदिर का इतिहास
ंयह मंदिर सोलहवीं शताब्दी का बताया गया है। मंदिर में मूल मूर्ति भगवान विजयवरदर की है। देवी लक्ष्मी विजयवल्ली तायार नाम से प्रतिष्ठित थी। इसके अलावा मंदिर परिसर में वेणुगोपाल स्वामी, राधा-रुक्मिणी, आलवार संतों के अलावा विष्णुवाहन गरुड़ की सन्निधि थी। फिलहाल गरुड़ के अलावा अन्य कोई सन्निधियां दिखाई नहीं देती। इनकी जगह झाडि़य़ों और वनस्पतियों ने ले ली है। मंदिर के इतिहास की जानकारी लेने पर पता चलता है कि यहां भीतरी गलियारे में विजय पुष्करिणी और बाहर परिधि में कमलतीर्थ हुआ करता था। इन दोनों तीर्थकुण्डों का नामो-निशान नहीं दिखाई देता। शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण बाबूरायर ने कराया था। इसी वजह से इस क्षेत्र का नाम भी बाबूरायनपेट्टै पड़ा।
तीन साल पहले हुआ बालालयम
मंदिर के संरक्षक परिवार के सदस्यों के बीच खींचतान का ग्रहण इस मंदिर को लगा। तीन साल पहले तक मंदिर की पूजा-आराधना करने वाले पुजारी ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि इस मंदिर का निर्माण संरक्षक रहे नागराजरायन के पूर्वजों ने कराया था। कई सालों तक उनके परिवार के सदस्यों ने इस मंदिर की पूजा अर्चना की लेकिन हमें कई सालों तक मासिक वेतन तक नहीं मिला। परिवार में उलझन बढऩे के बाद ३ साल पहले बालालयम (एक परिपाटी जिसके तहत गर्भगृह की मूल मूर्ति को उस स्थान से अन्यत्र रख दिया जाता है।) संस्कार किया गया तब से मंदिर बंद है। अब इसका जीर्णोद्धार करने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए।

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