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ज्ञान ही आत्मा का स्वभावसिद्ध अधिकार

locationचेन्नईPublished: Sep 21, 2018 05:15:32 am

पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जब स्वयं से ज्यादा ज्ञान वाले व्यक्ति के साथ रहते हैं तो आपके ज्ञान…

Knowledge is the natural authority of the soul

Knowledge is the natural authority of the soul

चेन्नई।पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जब स्वयं से ज्यादा ज्ञान वाले व्यक्ति के साथ रहते हैं तो आपके ज्ञान में वृद्धि होती है और कम ज्ञान वाले चापलूस लोगों के साथ रहोगे तो आपकी एनर्जी भी वैसी ही हो जाएगी।

ज्ञानी व्यक्ति आपको आपकी कमियों बताएगा और चापलूस आपके अहंकार में वृद्धि कर आपको गफलत में ले जाएगा। परमात्मा ऐसे मूर्खों के संग से बचने की प्रेरणा देते हैं इसलिए वस्तुस्थिति को समझें और वास्तविकता को पहचानें। जीवन में व्यवहारिक बनें और खुले दिमाग से देखें, सोचें और समझें। यदि कोई आपकी कमियां निकाले तो उस पर नाराज होने की बजाय गुरु की भांति उसका आभार मानें और अपनी गलतियों को पहचानकर उन्हें दूर करने का प्रयास करेंगे तो आपमें ज्ञान और प्रज्ञा की असीम ऊर्जा का स्रोत प्रवाहित होने लगेगा।
ज्ञान ही आत्मा का स्वभावसिद्ध अधिकार है। जिज्ञासा करना और ज्ञान प्राप्त करना मनुष्य गति का सबसे बड़ा वरदान है। श्रद्धा, चरित्र, आनन्द और ज्ञान कोई मनुष्य के अलावा अन्य गति के जीव प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए अपने इस अद्भुत सामथ्र्य का सदुपयोग करें।

धर्म को पहले अपने आचरण में उतारो उसके बाद आपका विजन स्वत: स्पष्ट होता चला जाएगा। जो व्यक्ति अपने समान ही दूसरे जीवों के सुख-दु:ख को समझता है वही आचरण में शुद्धि कर सकता है, वही अहिंसा प्रेमी है।

जब आप किसी से कुछ छीनोगे तो आपसे भी कोई दूसरा जरूर छीनेगा। वर्तमान में संसार को महावीर के इस सिद्धांत का अनुकरण करने की कड़ी आवश्यकता है।
जो व्यक्ति संयमी सोच वाला होता है, उसके विचारों से ऐश्वर्य झलकता है उसकी प्रज्ञा के सारे दरवाजे खुल जाते हैं। आप जैसे-जैसे धर्म को आचरण उतारते जाओगे आपका दृष्टिकोण स्पष्ट होता जाएगा।
परमात्मा कहते हैं कि आचार में रमण से जिसका ज्ञान सर्वग्रहण को समर्थ बनता है तो वह पाप-कर्म की खोज नहीं करता। वह छहकाय जीव के आरंभ सम्भारंभ से बच जाएगा।

इस पूरे संसार का मूलाधार जो है वही पूरा संसार है, इसे खोजने का परमात्मा कहते हैं। संसार का जन्म आपके अन्तर के भावों, सोचने के तरीकों से होता है। यदि बीज को समाप्त कर दिया जाए तो पेड़ और फल-फल आ ही नहीं पाएंगे। मुनि तीर्थेशऋषि ने भी उद्बोधन दिया। इस मौके पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष अभयकुमार श्रीश्रीमाल, चेयरमैन नवरतनमल चोरडिय़ा और कांता चोरडिय़ा ने तपस्वियों का सम्मान किया।

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