राजुपरोहित समाज का पांचमंजिला भवन बनवाया
चेन्नई : प्रवासी राजस्थानियों ने जहां दक्षिणी भारत में कारोबार के क्षेत्र में नाम कमाया, वहीं समाजसेवा में भी वे अग्रणी बने हैं। मेहनत और लगन के बूते आगे बड़े रहे इन लोगों ने भले ही तमिलनाडु को कर्मभूमि बनाया लेकिन आज भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से बेहद लगाव है। वे अपनी जन्मभूमि के विकास में लगातार हरसंभव सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है चेन्नई प्रवासी तथा राजस्थान के पाली के मादा निवासी लालसिंह राजपुरोहित की। पेश हैं चेन्नई से अशोक की उनसे खास बातचीत:::::
चेन्नई : प्रवासी राजस्थानियों ने जहां दक्षिणी भारत में कारोबार के क्षेत्र में नाम कमाया, वहीं समाजसेवा में भी वे अग्रणी बने हैं। मेहनत और लगन के बूते आगे बड़े रहे इन लोगों ने भले ही तमिलनाडु को कर्मभूमि बनाया लेकिन आज भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से बेहद लगाव है। वे अपनी जन्मभूमि के विकास में लगातार हरसंभव सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है चेन्नई प्रवासी तथा राजस्थान के पाली के मादा निवासी लालसिंह राजपुरोहित की। पेश हैं चेन्नई से अशोक की उनसे खास बातचीत:::::
राजपुरोहित ट्रस्ट की ओर से किए कई सेवा प्रकल्प लालसिंह वर्ष 1987 में चेन्नई पहुंच गए। चेन्नई आकर उन्होंने हिंदी बाहुल्य साहुकारपेट के काशी चेट्टी इलाके में छोटा व्यापार शुरू किया। वर्ष 2006 से 2016 तक तक राजपुरोहित समाज ट्रस्ट चेन्नई के अध्यक्ष रहे। उनके अध्यक्ष रहते संत खेतेश्वर का मंदिर एवं राजुपरोहित समाज का पांचमंजिला भवन बनवाया गया। राजपुरोहित ट्रस्ट की ओर से कई सेवा प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। हर साल मंदिर की वर्षगांठ धूमधाम से मनाई जाती है।
सुनामी के दौरान प्रभावित परिवारों की मदद की लालसिंह ट्रस्ट की ओर से सुनामी के दौरान विभिन्न स्थानों पर जाकर प्रभावित परिवारों की मदद की गई। विभिन्न स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से भी जरूरतमन्द लोगों की मदद की जा रही है। । राजस्थान से आने वाले जनप्रतिनिधियों का भी समय-समय पर सम्मान किया जाता है।
जन्मभूमि के लिए भी किए कार्य लालसिंह ने राजस्थान के जोधपुर जिले में खेतेश्वर विद्यापीठ बड़ली में ग्यारह लाख रुपए का आर्थिक सहयोग दिया है। अपने गांव मादा में पानी के लिएबोरवेल खुदवाकर दिया। बीकानेर स्थित खेतेश्वर भवन में भी कमरे बनवाकर दिए। चेन्नई स्थित खेतेश्वर भवन के निर्माण में भी विशेष सहयोग रहा। उनका राजस्थान से लगाव बना हुआ है। वे वर्ष में करीब 10 बार राजस्थान जाते हैं।