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लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं को बचाने के लिए तमिलनाडु की पहल देश के लिए अनुकरणीय

locationचेन्नईPublished: Aug 12, 2022 10:51:47 pm

Submitted by:

Santosh Tiwari

आदिवासी छात्र अपनी भाषा के शब्द अंग्रेजी या तमिल में एक कागज पर लिख इसे ‘भाषा बॉक्स’ में डालते हैं

लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं को बचाने के लिए तमिलनाडु की पहल देश के लिए अनुकरणीय

लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं को बचाने के लिए तमिलनाडु की पहल देश के लिए अनुकरणीय

कोयम्बत्तूर.

लुप्तप्राय आदिवासी भाषाओं को संरक्षित करने के प्रयास के तहत नीलगिरी जिले के कोटागिरी के पास सेम्मनारई गांव में एक आदिवासी आवासीय विद्यालय में एक ‘भाषा बॉक्स’ स्थापित किया गया है। इस बाक्स में आदिवासी छात्र अपनी भाषा के शब्द अंग्रेजी या तमिल में एक पेपर पर लिख बॉक्स में डालते हैं। इन शब्दों के लिखित रूप नहीं है। स्कूल में 35 इरूला और कुरुम्बा आदिवासी छात्र पढ़ रहे हैं। हालांकि अधिकांश जनजातीय भाषाओं का कोई लिखित रूप नहीं है फिर भी उनकी एक मौखिक परंपरा है। इस पहल का उद्देश्य छात्रों में अपनी भाषा के प्रति गर्व की भावना पैदा करना है। यह उनकी मातृभाषा में उच्चारण और रुचि को बेहतर बनाने में मदद करेगा। इरुला गीतों के संग्रहकर्ता ओडिएन लक्ष्मणन ने बताया हम इस पहल को इस क्षेत्र के सभी आदिवासी स्कूलों में ले जाने की योजना बना रहे हैं। लक्ष्मणन पिछले कुछ वर्षों से आदिवासी बच्चों के लिए ‘रीडिंग एंड लैंग्वेज रिट्रीवल मूवमेंट’ का नेतृत्व कर रहे हैं।
बक्सा गुल्लक की तरह है लेकिन यह मूल भाषा के शब्दों को इकट्ठा करता है जो पैसे से ज्यादा मूल्यवान है। छह महीने में एक बार बॉक्स खोला जाएगा और इसमें योगदान देने वाले छात्रों को सम्मानित किया जाएगा। इन शब्दों को संकलित करके एक पुस्तक लाने की योजना है।
नीलगिरी में आठ आदिम आदिवासी समूह

आदिवासी भाषाओं के शोधकर्ता एन थिरुमूर्ति के अनुसार नीलगिरी में आठ आदिम आदिवासी समूह टोडा, कोटा, इरुला, आलू कुरुम्बा, बेट्टा कुरुम्बा, मुल्लू कुरुबा, पनिया और कट्टुनायकर हैं।
‘कई आदिवासी बच्चे अब मातृभाषा नहीं बोलते’

प्रत्येक आदिवासी समूह की एक अलग भाषा होती है। उनके पास कहानियां, इतिहास, गीत और कहावतें हैं जो अद्वितीय हैं और संस्कृति और परंपरा के तत्व हैं जिन्हें केवल उनकी भाषा में ही व्यक्त किया जा सकता है। थिरुमूर्ति के अनुसार प्रवासन, स्वदेशी भाषाओं के लिए मान्यता की कमी, घटती जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक कारक इन भाषाओं को विलुप्त होने की ओर धकेल रहे हैं। आदिवासी बच्चों को उनकी मूल भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि उन्हें संरक्षित किया जा सके। छात्र अपनी मातृभाषा में कई शब्द भूल गए हैं। इस पहल से गायब हो चुके नए शब्दों का भी पता लगेगा।
कई बच्चे कहानीकार बने

‘रीडिंग एंड लैंग्वेज रिट्रीवल मूवमेंट’ पिछले दो वर्षों से बच्चों की आवाज में लोककथाओं को रिकॉर्ड कर रहा है और उन्हें अमेरिकी तमिल रेडियो पर प्रसारित कर रहा है और कई बच्चे अपनी मूल भाषा में कहानीकार बन गए हैं।

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