उन्होंने बताया पं. रामानन्द शर्मा ने 1952 में साहित्यानुशीलन समिति की स्थापना की थी। अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र के निदेशक साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने विमलसूरि द्वारा रचित पहली सदी के प्राकृत ग्रंथ ‘पउमचरियंÓ में रामकथा की कई रोचक विशेषताएं बताईं। उन्होंने अपने शोधनिबंध में बताया कि वाल्मीकि रामायण के पश्चात् रामकथा से सम्बन्धित ग्रन्थों में पउमचरियं प्राचीनतम तथा प्रथम ‘जैन रामायणÓ है।
इसमें राम के चरित्र को अधिक उदाश्र, अहिंसामय और अनासक्त बताया गया है। इसमें बताया गया है कि राम मानव से महामानव, महामानव से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बने। पउमचरियं में रावण-वध लक्ष्मण करते हैं। स्वर्णमृग, कुंभकर्ण की छह माह की नींद जैसी घटनाएं पउमचरियं में नहीं हैं। रावण की माँ अपने बेटे को नौ मणियों का हार पहनाती थी, उसमें रावण के नौ मुख प्रतिबिंबित होते थे, इसलिए दशमुख नाम हुआ।
डॉ. एळ्ल् िनाच्चियार ने तमिल भाषा की कम्ब रामायण में रामचरित पर शोधपत्र पढ़ा। नारायण कण्णन ने डॉ. महेन्द्र कार्तिकेय के काव्य में रामचरित की व्याख्या की। डॉ. प्रिया नायडू ने आधुनिक हिन्दी काव्य में चित्रित नारी पर विचार रखे। पूजा पाराशर ने कथाकार प्रेमचन्द पर कविता सुनाई।
अध्यक्ष और मुख्य अतिथि के अलावा समाजसेवी शोभाकांत दास और प्रकाशमल भंडारी ने विद्वानों का सम्मान किया। संगोष्ठी में डॉ. एम. शेषन, पी.के. बालसुब्रमण्य, डॉ. चित्ती अन्नपूर्णा, डॉ. ए. भवानी, अखिलेश्वर मिश्र, सुनील भंडारी सहित हिन्दी-तमिल के अनेक विद्वान मौजूद थे।