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चेन्नई

भक्तों की ४० वर्षों की प्रतीक्षा पूरी – १ जुलाई से १७ अगस्त तक होंगे दर्शन

कांचीपुरम वरदराजा kancheepuram varadraja perumal भगवान मंदिर temple परिसर के सरोवर से भगवान diety अत्तिवरदर Athithi Varadar की मूर्ति को आगम अनुष्ठान व भक्तों devotee के दर्शनार्थ शुक्रवार ब्रह्ममुहूर्त में निकाला गया। सरोवर के तल underwater की खुदाई का यह कार्य तीन घंटे चला।

चेन्नईJun 29, 2019 / 03:58 pm

shivali agrawal

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भक्तों की ४० वर्षों की प्रतीक्षा पूरी – १ जुलाई से १७ अगस्त तक होंगे दर्शन

– अत्तिवरदर का महात्म्य

चेन्नई. कांचीपुरम वरदराजा kancheepuram varadraja perumal भगवान मंदिर temple परिसर के सरोवर से भगवान diety अत्तिवरदर Athithi Varadar की मूर्ति को आगम अनुष्ठान व भक्तों Devotee के दर्शनार्थ शुक्रवार ब्रह्ममुहूर्त में निकाला गया। सरोवर के तल underwater की खुदाई का यह कार्य तीन घंटे चला। साथ ही भगवान अत्तिवरदर Athi Varadar के दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे भक्तों devotee की 40 वर्षों की साधना पूरी हो गई। एक जुलाई से 17 अगस्त तक अत्तिवरदर के दर्शन होंगे। प्रारंभिक दिनों में चालीस साल जल के नीचे underwater रही इस मूर्ति का रंग गहरा होता है जो बाद गेहुआं हो जाता है। अत्तिवरदर के शुरुआत के चौबीस दिन शयन मुद्रा तथा शेष चौबीस दिन खड़ी मुद्रा में दर्शन होंगे।
कांचीपुरम मंदिरों की नगरी है। कांचीपुरम kanchipuram का आशय उस स्थल से है जहां प्रजापिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की पूजा की। कांचीपुरम में जितने शिव मंदिर और उनका प्रताप है उतने ही विष्णु मंदिर भी हैं। इनमें सबसे प्रमुख वरदराजा भगवान मंदिर है।
अत्तिवरदर की कथा
अत्तिवरदर की जातक कथा इस प्रकार है कि ब्रह्मा ने लक्ष्मी को सरस्वती से श्रेष्ठ बताया। देवी सरस्वती कुपित हो गईं और ब्रह्मा के यज्ञानुष्ठान में बैठने से मना कर दिया। प्रजापिता ने अकेले ही यज्ञ किया। रुष्ट सरस्वती ने वेगवती नदी का रूप लिया और यज्ञ में विघ्न डालने की चेष्टा की। भगवान विष्णु ने तब शयन मुद्रा में वेगवती के वेग को रोक दिया और तिरुवेगा कहलाए। यज्ञ की पूर्णाहुति पर भगवान वरदराजा अग्नि रूप में प्रकट हुए। ब्रह्मा ने आग्रह किया कि वे कांचीपुरम में ही प्रतिष्ठित हो जाएं। तत्पश्चात ब्रह्मा ने विश्वकर्मा को आज्ञा दी कि वे भगवान वरदराजा की मूर्ति बनाएं। भगवान की मूल उत्सव मूर्ति अंजीर fig (तमिल में अत्ती) की लकड़ी से निर्मित ९ फीट की है। मुगल काल में इस मूर्ति को सुरक्षित करने के लिए इसे चांदी के सांचे में रख मंदिर के सरोवर अनंततीर्थम में जल के नीचे समाहित कर दिया गया। तत्पश्चात उस स्थल पर छोटे से मंदिर का निर्माण कर दिया गया। जल के भीतर इस मूर्ति को रखे जाने के पीछे एक और तर्क यह भी है कि कालांतर में यह खंडित हो गई थी। आगम शास्त्र के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा-नहीं की जा सकती।
४० वर्ष की विशेषता
अत्तिवरदर की मूर्ति को जल के नीचे से चालीस वर्ष में एक बार निकालने का बड़ा विशेष कारण है। वैष्णव शोधार्थी के अनुसार तमिलनाडु में आम मान्यता के तहत यदि कोई व्यक्ति ५०० अथवा १००० पूर्णिमा देख लेता है तो उसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। तमिलनाडु में ८० वर्ष की आयु में सदाभिषेकम का आयोजन होता है जो करीब १ हजार पूर्णिमा के समकक्ष है। उसका आधा ४० वर्ष होता है। इसी वजह अत्तिवरदर की मूर्ति को निकालने का समय ४० वर्ष निर्धारित हुआ था।
महत्वपूर्ण बातें व सुविधाएं
– ४८ दिनों तक अत्तिवरदर के दर्शन मात्र होंगे। कोई विशिष्ट पूजा नहीं होगी।
– दर्शन सुबह ६ से २ बजे तक और दोपहर तीन से रात ८ बजे तक होंगे।
– दर्शन के लिए भक्तों की कतार पूर्वी राजगोपुरम से होगी।
– फ्री दर्शन के अलावा ५० व ५०० रुपए के टिकट से भी दर्शन होंगे।
– श्रीवरदराजर और लक्ष्मीजी की सन्निधि के दर्शन के लिए पश्चिमी राजगोपुरम से भक्तों को प्रवेश दिया जाएगा।
– अन्य जिलों से आने वाले भक्तों के लिए जिला प्रशासन ने बस स्टैंड, चिकित्सा शिविरों, शौचालयों व पेयजलादि की सुविधा की है।
– अस्थाई बस अड्डे से मंदिर की तरफ जाने के लिए २० सरकारी बसों का उपयोग होगा।
– पूरे शहर में खासकर मंदिर वाले क्षेत्र में १००-१०० मीटर पर सीसी कैमरे लगाए गए हैं।
– स्वास्थ्य विभाग की पांच टीम मंदिर परिसर में और चार टीम परिसर के बाहर तैनात रहेंगी।

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