जस्टिस एन कृपाकरन एवं जस्टिस बी पुगालेंधी की पीठ ने कहा कि”जब कभी भी कोई संवेदनशील मामला सामना आता है या कोई जघन्य अपराध होता है तो सीबीआइ जांच की मांग उठती है। लोग स्थानीय पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं करते और सीबीआइ जांच की मांग करते हैं। ऐसे में इसे भी चुनाव आयोग और भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की तरह स्वायत्तता जरूर मिलनी चाहिए।
कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। अपने एक निर्देश में कोर्ट ने सीबीआइ को ज्यादा अधिकार एवं क्षेत्राधिकार देने सहित जांच एजेंसी को स्वायत्त बनाने की बात कही है। कोर्ट का मानना है कि ऐसा करने से सीबीआइ भी चुनाव आयोग और भारत के नियंत्रक और कैग की तरह आज़ादी से काम कर पाएगी।
पीठ ने यह टिप्पणी सीबीआई की एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए की है। अर्जी में कहा गया है कि वह कर्मियों की कमी से जूझ रही है। कोर्ट ने कहा कि जब लोग जांच की मांग करते हैं तो सीबीआइ यह कहते हुए पीछे हट जाती है कि उसके पास संसाधनों एवं लोगों की कमी है। यह बहुत दुखद है।
पीठ ने कहा कि हर बार सीबीआइ के पास यही रटा-रटाया जवाब होता है। न्यायाधीशों ने सीबीआइ के लिए एक अलग बजटीय आवंटन की सिफारिश की और एजेंसी के निदेशक को सरकार के सचिव के बराबर शक्तियां देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सीबीआइ प्रमुख सीधे संबंधित मंत्री या प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेंगे।
खंडपीठ ने सीबीआई निदेशक को छह सप्ताह के भीतर कर्मचारियों की संख्या के साथ डिवीजनों और विंगों में और वृद्धि की मांग करते हुए एक विस्तृत प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया। निर्देश में कहा गया है कि प्रस्ताव प्राप्त होने पर केंद्र तीन महीने के भीतर इस पर उचित आदेश पारित करेगा।