मनुष्य के भाव ही आगामी भव के निर्माता
चेन्नईPublished: Mar 13, 2019 04:18:21 pm
जैन स्थानक में विराजित कपिल मुनि ने मंगलवार को आयोजित समझें जीवन के मर्म को विषय पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन की धन्यता और सार्थकता इसी में है कि हमारे विचार और व्यवहार में उत्तरोत्तर शुद्धता, उच्चता और उदारता की अभिव्यक्ति हो।
चेन्नई. पुरुषवाक्कम में ताना स्ट्रीट स्थित जैन स्थानक में विराजित कपिल मुनि ने मंगलवार को आयोजित समझें जीवन के मर्म को विषय पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन की धन्यता और सार्थकता इसी में है कि हमारे विचार और व्यवहार में उत्तरोत्तर शुद्धता, उच्चता और उदारता की अभिव्यक्ति हो और यह अभिव्यक्ति प्रदर्शन के लिए नहीं बल्कि आत्म दर्शन और वास्तविक आनंद की अनुभूति के लिए होनी चाहिए। व्यक्ति अधिक जीने की इच्छा तो रखता है मगर जीवन को अच्छा बनाने की दिशा में उदासीन बना रहता है। जीवन को अच्छा बनाने में तभी कामयाबी हासिल हो सकती है जब मरण का सच अर्थात जीवन की नश्वरता का बोध हो। फिर व्यक्ति गहन तृष्णा, आसक्ति और अनैतिक कर्म आदि दोषों के दलदल में फंस नहीं सकता। जीवन में ये दोष वर्तमान जीवन को अशांत और दूषित करते हैं और भविष्य में दुर्गति का कारण बनते हैं।
उन्होंने कहा व्यक्ति के भाव ही भव के निर्माता होते हैं इसलिए आगामी भव को सुधारने के लिए भावों का शुद्धिकरण बेहद जरुरी है। बड़े अचरज की बात तो यह है कि इस अनित्य जीवन में व्यक्ति ऐसी योजना और कल्पना के जाल बुनता है जैसे उसे स्थायी रूप से यह जीवन मिला हो। भले ही जीवन की अवधि कितनी भी लंबी क्यों ना हो मगर उसका अंत सुनिश्चित है। मृत्यु के सच से परिचित होने का यह अर्थ कतई नहीं है कि व्यक्ति अकर्मण्य और निराशावादी बन जाए बल्कि इतना ही तात्पर्य है कि हम जीवन के कुछ ऐसा इंतजाम करें जिससे जीवन के हरेक मोर्चे पर हमारी चेतना सतत जागरूक रहे और चेतना को शुद्ध सरल और सात्विक बनाने की दिशा में अधिक पुरुषार्थ कर सकें। सामायिक, ध्यान , व्रत नियम, प्रवचन श्रवण और संत समागम आदि चेतना की शुद्धि में कारगर हो सकते हैं।