क्षमा ही सबसे बड़ा ज्ञान-दान व इंद्रिय दमन है
चेन्नई. साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने बारसासूत्र का सार बताते हुए कहा कि क्षमा मांगनी चाहिए, क्षमा देनी चाहिए, शांत रहना चाहिए। जो व्यक्ति क्रोध, मान, माया, लोभ व राग-द्वेष को शांत कर क्षमा-याचना करता है,उ सी की आराधना सार्थक होती है। वैर से वैर कभी शांत नहीं होता, सिर्फ प्रेम से ही वैर शांत होता है। उन्होंने स्वरचित ‘देर क्यूं करता है अभी, आज कह दे प्रभु को सभी’ क्षमा का गीत गाते हुए कहा कि पापों से भरी हुई पोटली को प्रभु व गुरु चरणों में सौंपकर अपनी आत्मा को हल्की बना देना चाहिए। अभिमान के कारण हम अपना अपराध स्वीकार नहीं कर पाते। हमारी आत्मा सब कुछ जानते हुए भी सत्य बोलने से कतराती है और भ्रम का भूत हटाने से घबराती है। प्रभु के पास प्रायश्चित करने से सब पाप मिट जाते हैं और भजन से सारे वजन सिर से हट जाते हैं। क्षमा रूपी जल से हमारा जीवन निर्मल हो जाता है। क्षमा निर्बल का बल है, शक्तिशाली का अलंकार है। मनुष्य की शोभा रूप से, रूप की शोभा गुण से, गुण की शोभा ज्ञान से और ज्ञान की शोभा क्षमा से होती है। क्षमा ही बड़ा दान है, क्षमा ही बड़ा तप है, क्षमा ही बड़ा ज्ञान है और क्षमा ही बड़ा इन्द्रिय दमन है। सबसे पहले हमें क्षमा उसी से मांगना चाहिए, जिससे हमारी बोलचाल बंद है, जिसके प्रति हमारे भीतर द्वेष की ज्वालाएं भडक़ रही है। प्रवचन के पश्चात् सिद्धि तप व अ_ाई आदि के तपस्वियों ने पच्चक्खाण लिया। सांयकालीन संवत्सरी प्रतिक्रमण करके सभी ने परस्पर एक-दूसरे से क्षमायाचना की। संवत्सरी दिवस के अवसर दो सौ से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने पौषध-व्रत धारण किया।