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पेट की भूख ने बना दिया बाल श्रमिक!

locationचेन्नईPublished: Oct 14, 2019 03:35:41 pm

Submitted by:

Dhannalal Sharma

uमहज १० से १४ वर्ष आयुवर्ग (14 year age group) में अपने परिवार की परेशानी (Family Problem) कम करने के लिए ये बच्चे कुछ न कुछ बेचते (sale any thing) नजर आते हैं।

पेट की भूख ने बना दिया बाल श्रमिक!

पेट की भूख ने बना दिया बाल श्रमिक!

चेन्नई. तमिलनाडु सरकार यह दावा करती है कि तमिलनाडु बाल मजदूरी से मुक्ति पा चुका है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। महानगर के रेटेरी ट्रेफिक सिग्नल, नंदनम सिग्नल, अण्णानगर राउंडटाना समेत कई ऐसे इलाके एवं सड़कों के चौराहे हैं जहां दर्जनों से भी अधिक बच्चे खिलौने और अन्य सामग्री बेचते नजर आते हैं। महज १० से १४ वर्ष आयुवर्ग में अपने परिवार की परेशानी कम करने के लिए ये बच्चे कुछ न कुछ बेचते नजर आते हैं। बात करने पर इन बच्चों का कहना होता है कि पेट की भूख ने उनका बपचन छीनकर बाल श्रमिक बनाने पर मजबूर कर दिया। उनके माता पिता की इतनी हैसियत नहीं कि परिवार आसानी से चला सकें। इसलिए परिवार का पेट पालने के लिए काम कर रहे हैं।
छिन जाता है बच्चों का बचपन
शहर के अनेक रेस्तरां हैं जिनमें बच्चे काम करते हैं। परिवार की हैसियत कमजोर होने एवं कमाई कम होने के कारण बच्चों का बचपन तो छिनता ही है उनकी शिक्षा-दीक्षा का समय भी चला जाता है जिससे वे आगे चलकर वे किसी भी काबिल नहीं जाते हैं। अनपढ़ होने के कारण जीवनभर केवल मजदूर ही बने रहते हैं।
सरकार की कथनी और करनी में फर्क
वैसे नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट के तहत ९ से १४ वर्ष के किशोरवय बच्चे जो अनाथ और बेसहारा हैं उनके लिए सरकार ही भोजन और शिक्षा की व्यवस्था करती है। लेकिन महानगर के प्रमुख मार्गों पर सैकड़ों की तादाद में बाल मजदूरी कर रहे किशोरवय बाल मजदूरों को देखने से तो यह प्रतीत होता है कि सरकार की कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क है। पिछले साल २०१८ में केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु में ८२७६ बाल मजदूरों को आजाद करवाया गया था।
समय-समय पर सरकार करती है कार्रवाई
हालांकि सरकार द्वारा बाल मजदूरी रोकने के लिए कई बार उन संस्थानों पर छापेमारी भी की जाती है जहां बच्चों का शोषण होता है। कुछ महीने पहले उत्तर चेन्नई के कुछ इलाकों में आभूषण से जुड़ी कंपनियों में सरकारी अधिकारियों ने छापेमारी कर लगभग तीन दर्जन से अधिक बच्चों को मुक्त कराया था। इसके अलावा मनली स्थित कई केमिकल्स कंपनियों में कार्यरत बड़ी संख्या में बच्चों को मुक्त कराया गया। इन बाल श्रमिकों में अधिकांश उत्तर पूर्व भारत के बच्चे होते हैं। माता पिता के पास उनके भरण पोषण के लिए कमाई का साधन नहीं होने के कारण वे बच्चों को अन्य राज्यों में काम करने के लिए भेज देते हैं।
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