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नई शिक्षा नीति के बॉयकॉट के पीछे छिपे हैं हिंदी विरोध के स्वर

locationचेन्नईPublished: May 18, 2021 10:50:15 pm

नई शिक्षा नीति के बॉयकॉट के पीछे छिपे हैं हिंदी विरोध के स्वर
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चेन्नई. तमिलनाडु सरकार के शपथ लेने के दो सप्ताह के भीतर ही केन्द्र से तनातनी शुरू हो गई है। तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) की ऑनलाइन बैठक का बहिष्कार कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। डीएमके विपक्ष में थी तब भी केन्द्र की नीतियों को लेकर विरोध दर्ज कराती रही थी। अब खुलकर सामने आ गई है। डीएमके ने अब एनईपी की बैठक का बॉयकॉट कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। हालांकि पूर्ववर्ती एआईएडीएमके सरकार भी नई शिक्षा नीति के खिलाफ थी। अब डीएमके एनईपी को तमिलनाडु में किसी कीमत पर लागू होने नहीं देना चाहती है।
केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने राज्यों के शिक्षा सचिवों के साथ वर्चुअल मीटिंग रखी थी। इसके लिए बकायदा सभी राज्यों को सूचित भी किया गया था लेकिन तमिलनाडु ने मीटिंग में शामिल होने से इनकार कर दिया। तमिलनाडु सरकार का कहना था कि इस बैठक में शिक्षा मंत्रियों को आमंत्रित न कर शिक्षा सचिवों को बुलावा भेजा गया। इसलिए बैठक के बॉटकॉट का निर्णय लिया। यह तर्क गले नहीं उतर रहा।
दरअसल विरोध नई शिक्षा नीति के त्रिभाषाई फॉर्मूले को लेकर है। हालांकि केन्द्र ने इस बिन्दु पर ड्राफ्ट में संशोधन की बात कही है। बावजूद द्रविड़ दल इनईपी के विरोध में लामबंद है। द्रविड़ दलों को लगता है कि तमिलनाडु में द्विभाषाई फॉर्मूला ही अधिक कारगर है। उन्हें इस बात का डर है कि यदि त्रिभाषाई फॉर्मूला लागू किया गया तो उन पर हिंदी एवं संस्कृत थोपी जाएगी जो उन्हें कतई स्वीकार नहीं है।
तमिलनाडु में हिंदी का विरोध कोई नई बात नहीं है। साढ़े पांच दशक पहले हिंदी विरोध का आंदोलन हिंसक हो गया था। उनके बाद से द्रविड़ पार्टियां गाहे-बगाहे लगातार हिंदी को लेकर विरोध दर्ज कराती रही हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगे साइन बोर्ड पर हिंदी में लिखे नामों पर कई बार कालिख पोत दी गई। स्कूल-कॉलेज में हिंदी पढ़ाने पर राजनीतिक दल कई बार आपत्ति कर चुके है।
भाषा के आधार पर देखा जाएं तो तमिल एवं हिदी दो सगी बहनें हैं। इस मानसिकता को आधार बनाकर तमिलभाषी लोगों का दिल जीता जाएं। केन्द्र को भी इस बात के लिए आश्वस्त करना होगा कि हिदी थोपी नहीं जा रही है। सभी की एकराय से ही हिंदी को अपनाने पर सहमति बने। किसी तरह की भाषाई दीवारें खड़ी न हो।
ashok.singh@in.patrika.com

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