अपनी करनी का जिक्र कभी भी जुबान पर मत लाओ
चेन्नईPublished: Nov 09, 2018 12:01:04 pm
भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव संपन्न : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि- ‘‘अर्हतश्री’’ पुरस्कार की घोषणा
अपनी करनी का जिक्र कभी भी जुबान पर मत लाओ
चेन्नई. गुरुवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषवाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि ने भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक और प्रथम गणधर गौतमस्वामी केवलज्ञान महोत्सव का कार्यक्रम संपन्न करवाया।
उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सान्निध्य में २१ दिवसीय श्रीमद् उत्तराध्ययन श्रुतदेव की आराधना संपन्न हुई तथा भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव एवं गौतम प्रतिपदा का आयोजन हुआ। भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर श्रीमद् उत्तराध्ययन श्रुतदेव की भव्य आराधना और भगवान महावीर के समवशरण की भाव-रचना करवाई। उन्होंने कहा कि भगवान के अंतिम समय में इंद्रभूति गौतम वहां से चले जाते हैं और सुधर्मास्वामी के लिए वह विकट वेला थी। कि प्रभु नहीं है और इंद्रभूति भी नहीं है। इंद्र उन्हें लाने को चलते हैं और सुधर्मास्वामी उपस्थित भक्तों को परमात्मा के सिद्धत्व मंत्र का श्रवण कराते हैं। इंद्रभूति को जिस दुनिया में प्रभु नहीं उस दुनिया की कल्पना करना असंभव लग रहा था। वे विश्व की पीड़ा से घनीभूति हो आंसू बहाकर बिलखने लगते हैं कि इतने असंख्य गौतम को कौन संभालेगा और कौन सवालों के जवाब देगा। सुधर्मास्वामी इंद्रभूति गौतम का बिलखना निरंतर अपने ध्यान में देखते हैं। इंद्रभूति इंद्र से कहते हैं कि मैं प्रभु के लिए नहीं बिलख रहा, मैं जिन्हें प्रभु नहीं मिलेंगे उनके दर्द को जानकार मैं महसूस कर रहा हंू। मैं हर पल प्रभु को जीता हंू। इंद्र कहते हैं कि प्रभु के उन्हीं शब्दों को याद करो और दुनिया को प्रदान करो। परमात्मा ने कहा था कि मेरे निर्वाण के बाद तुम सर्वज्ञ बनोगे। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि संघ तभी चलेगा जब हम सुधर्मास्वामी की तरह कहेंगे कि परमात्मा ने ऐसा कहा। स्वयं को महत्व देंगे तो संघ से अलग हो जाएंगे। वेदना के परम पलों में जिसे आत्मतत्त्व की अनुभूति होती है, वे नेमी राजर्षि की तरह शाश्वत पथ पर बढ़ते हैं, यह परमात्मा का संदेश है। अपनी जिन्दगी में बहुश्रुत की पूजा करें। उसका जीवन चंद्र, शंख और इंद्र के ऐरावत समान बन जाता है। परमात्मा शिखर पर यही कहेंगे कि जिंदगी में बदले में कुछ मत मांगो। जो किया पवित्र भावना से किया। अपनी करनी का जिक्र कभी भी जुबान पर मत लाओ, यह नियाणा का सूत्र है। कैसे भिक्षु बनकर जीना चाहिए। भिक्षु के लिए किस प्रकार का माहौल बनाकर जीना चाहिए। सदाचार के जीवन के लिए वैसा ही माहौल बनाना जरूरी है। जो ऐसा नहीं करता वह साधु वेश में भी पापी बन आस्था के साथ खिलवाड़ करता है।
चातुर्मास में संघपति का दायित्व निभानेवाले तालेड़ा, श्रीश्रीमाल और चौरडिय़ा परिवार का बहुमान किया गया।
उत्तमचंद गोठी, अमरचंद भंडारी, रसालबाई सिंघवी, प्रकाशबाई सिंघवी, प्रेमकुमार कांकरिया, रीतु सुराणा, आशाबाई पुंगलिया, संगीता गुगलिया, सुशीलाबाई बोहरा, ललिताबाई जांगड़ा सहित चातुर्मास समिति के सदस्यों और एएमकेएम ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा संघपति श्राविकाओं का स्वागत किया।
कार्यक्रम में चातुर्मास समिति के चेयरमेन नवरतनमल चोरडिय़ा, अध्यक्ष अभयश्रीश्रीमाल, कार्याध्यक्ष पदमचंद तालेड़ा, महामंत्री अजीत चोरडिय़ा, कोषाध्यक्ष जेठमल चोरडिय़ा, सुनील कोठारी, कांताबाई चोरडिय़ा तथा एएमकेएम ट्रस्ट के शांतिलाल खांटेड़ सहित अनेक उपनगरीय क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं और समाज के गणमान्य उपस्थित रहे। धर्मीचंद सिंघवी ने उपस्थित जनों का एएमकेएम ट्रस्ट की ओर से चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों का हार्दिक अभिनन्दन किया। ट्रस्ट में जुड़े नए सदस्यों कांकरिया, करनावाट और कटारिया परिवार का स्वागत किया गया।
शुक्रवार को नन्दीवर्धन के परमात्मा के मिलन का प्रसंग श्रवण कराया जाएगा। १० नवम्बर को ९ से १० बजे तक वीरत्थुई विवेचन और अर्हम विज्जा की पुस्तक का विमोचन का कार्यक्रम, १२ नवम्बर को १४०० कुष्टरोगियों तथा अनेक दिव्यदृष्टि बच्चों को अर्हम पुरुषाकार पराक्रम साधना के साथ पूर्णत: शाकाहारी व जैन बनाकर धर्म से जोडऩे के प्रेरणास्पद कार्य के लिए ललिताबाई गौतमचंद जांगड़ा को ‘‘अर्हत श्री’’ से पुरस्कृत किया जाएगा।