आज्ञा का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म
चेन्नईPublished: Mar 01, 2019 01:08:53 pm
रायपेट्टा स्थित सिंघवी जैन स्थानक में जयधुरंधरमुनि ने कहा कि विनय धर्म का मूल है।
चेन्नई. रायपेट्टा स्थित सिंघवी जैन स्थानक में जयधुरंधरमुनि ने कहा कि विनय धर्म का मूल है। जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष नहीं टिक सकता है, उसी प्रकार विनय के बिना धर्म नहीं टिक सकता। जहां विनय है, वहां सारे सद्गुण है, वहां आत्मा का उत्थान है और जहां अहं है, वहां निश्चित ही पतन है। विनय के साथ विवेक भी जुड़ जाने से व्यक्ति पाप से बच जाता है। केवल गुरु की आज्ञा ही नहीं, घर के बुजुर्गों की आज्ञा का पालन करना भी उतना ही जरूरी है। आज्ञा का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है। इस गुण से घर में शांति बनी रहती है, समर्पणता होगी तो ही बड़ों की आज्ञा का पालन हो पाएगा। आज्ञा की अवहेलना करने से आशातना होती है, जो कर्म बंध का कारण बन जाती है। किसी की आराधना कर सके या नहीं पर किसी की आशातना तो कदापि नहीं करनी चाहिए। सेनापति के आदेश पर जिस तरह सेना मर मिटने के लिए तैयार रहती है, उसी प्रकार विनीत शिष्य को भी गुरु की आज्ञा मानने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। गुरु कभी अनुचित आज्ञा नहीं देते हैं। गुरु के निर्देशन में ही शिष्य को ज्ञानार्जन, तपस्या आदि करनी चाहिए। गुरु के आदेश, उपदेश, निर्देश को समझ कर उसके अनुरूप आचरण करना ही विनीत शिष्य का लक्षण होता है। जहां विनय होगा, वहां सेवा का गुण भी प्रकट हो जाएगा। अपने से बड़े गुणीजनों की सेवा करना तप है । विनय एवं वैयावृत्य रुपी तपो से कर्मों की निर्जरा होती है। विनीत के लक्षणों को प्रस्तुत करते हुए मुनि ने कहा कि सामने वाले के इशारों को समझ कर कार्य कर लेना चाहिए, क्योंकि हर बात कहने की नहीं होती है। समझदार को तो इशारा ही काफी है । अनेक बार व्यक्ति इशारा तो दूर, स्पष्ट कहे जाने पर भी जानबूझकर उसके विपरीत आचरण करता है, जो अविनीत है ।विनय धर्म ही भारतीय संस्कृति की अमूल्य देन एवं धरोहर है, जिसका संरक्षण होना जरूरी है। मुनिगण यहां से विहार कर मीरसाहिबपेट स्थित केशर कुंज पहुंचेंगे।