भाव शुद्धि से व्यवहार स्वभाव विशुद्ध बनते हैं आचार्य ने कहा, बीमारी, तनाव को मिटाना ध्यान का लक्ष्य नहीं है यह तो सहज हो ही जाते हैं। भाव शुद्धि से व्यवहार स्वभाव विशुद्ध बनते हैं। मुनि कुमुद कुमार ने कहा- निर्जरा के बारह भेद में एक भेद है ध्यान। ध्यान की प्रक्रिया हजारों वर्ष पुरानी है। ध्यान का अर्थ आंख मूंद कर बैठना ही नहीं होता है ध्यान यानी स्वयं को जानना। आत्म साक्षात्कार करना होता है। चित् शुद्धि, आदतों में परिवर्तन वर्तमान में जीना ध्यान के अ यास से ही होता है। ध्यान में एकाग्रता, आहार विवेक अवश्य होता है। पवित्र आभामंडल प्रशस्त लेश्या ध्यान का परिणाम है। ध्यान के सहायक तत्व को जाने बिना ध्यान की साधना स यक नहीं होती है। बाहर जीने वाला व्यक्ति भीतर की चेतना जागृत नहीं कर सकता। रंग विज्ञान का भी अपना महत्व है। रंग हमारे भाव धारा को प्रभावित करते हैं।
प्रयोग एवं प्रशिक्षण देते हुए विवेचना प्रस्तुत की प्रशिक्षक हेमराज ने प्रेक्षा ध्यान के उद्देश्य एवं मूल सिद्धांतों का प्रशिक्षण देते हुए कहा- भाव युक्त क्रिया हमारे जीवन को महत्वपूर्ण बनाती है। प्रत्येक साधक का चिंतन प्रतिक्रिया से रहित होना चाहिए। जिसका अपने मन पर संयम है वह संतुलित जीवन जीता है। मैत्री भाव मिताहार तथा मित भाषण जीवन का अंग बन जाए तो जीवन में परमानंद का अनुभव होता है। दूसरे सत्र में कार्योत्सर्ग के वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक तत्वों पर चर्चा करते हुए कार्योत्सर्ग प्रयोग करवाया। तीसरे सत्र में स्वास्थ्य संबंधी ध्यान के प्रयोग के साथ साथ प्राण का सूक्ष्म व्या या पूर्वक महत्व बताया। श्वास कैसे लेना उससे संकल्प बल, शरीर एवं मन पर कितना प्रभाव पड़ता है। शरीर विज्ञान, अनुप्रेक्षा, मंत्र प्रेक्षा का प्रयोग एवं प्रशिक्षण देते हुए विवेचना प्रस्तुत की। यौगिक क्रिया, प्राणायाम, योगासन किस प्रकार किए जाएं तन मन को कैसे संतुलित रखा जा सकता है यह प्रयोग बताया गया।