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गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे जूझ रहे संसाधनों की कमी से, केवल पांच फीसदी छात्र ही ले पा रहे ऑनलाइन कक्षा

locationचेन्नईPublished: Oct 31, 2020 06:53:05 pm

गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे जूझ रहे संसाधनों की कमी से, केवल पांच फीसदी छात्र ही ले पा रहे ऑनलाइन कक्षा- सर्वे में खुली ऑनलाइन कक्षा के दावे की पोल- सरकारी व निजी स्कूल के छात्रों के बीच डिजिटल फासला

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चेन्नई. कोरोना महामारी के चलते स्कूलें बन्द होने पर ऑनलाइन पढ़ाई की जा रही है लेकिन गांव के सरकारी स्कूलों के बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के लिए संसाधनों का अभाव है। गांव की सरकारी स्कूलों में हर दूसरे छात्र के पास स्मार्ट फोन नहीं है। दूसरी तरफ गांव के निजी स्कूलों में हर पांच में से चार छात्रों के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध है। शिक्षा की वार्षिक रिपोर्ट (ग्रामीण) 2020 में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट काफी चौकाने वाली है। ग्रामीण सरकारी स्कूलों के 56.9 फीसदी के पास स्मार्ट फोन है लेकिन इनमें से ऑनलाइन (लाइव कक्षा) में केवल 5.3 फीसदी छात्र ही उपस्थित हो पा रहे हैं। जबकि निजी स्कूल के छात्रों की बात की जाएं तो 21.1 फीसदी छात्र लाइव कक्षा में उपस्थिति दे रहे है।
तमिलनाडु के 31 जिलों के 923 गांवों के 2928 घरों में सर्वे किया गया। 2134 बच्चे 5 से 16 वर्ष की आयुवर्ग के थे। गौर करने वाली बात यह थी कि ऑनलाइन कक्षा के फरमान के बीच सरकारी स्कूलों के 55 फीसदी छात्रों को टेक्स्टबुक से ही अपना अध्ययन जारी रखना पड़ रहा था। जबकि 47.3 फीसदी ने केबल टीवी कक्षा ज्वाइन की। शेष में से 14.6 फीसदी ने वीडियो रिकोर्ड कक्षा से सीखा। केवल 5.3 फीसदी ने ही ऑनलाइन कक्षा को अपनाया।
स्कूल से मेटेरियल ही नहीं मिल रहा
बात चाहे सरकारी स्कूल की हो या फिर निजी स्कूल की अधिकांश अभिभावकों का कहना है कि स्कूल की तरफ से कोई लर्निंग मेटेरियल नहीं भेजा गया। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के 59 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि स्कूल की तरफ कोई मेटेरियल नहीं भेजा गया। दूसरी तरफ 31.3 फीसदी के पास तो मेटेरियल को हासिल करने के लिए स्मार्टफोन ही नहीं है। 8.6 फीसदी के पास इन्टरनेट की सुविधा नहीं है। तीन फीसदी के पास कनेक्टिविटी की समस्या है।
सरकारी स्कूलों के छात्र डिजिटल से कौसों दूर
दूसरी तरफ निजी स्कूलों के मामले में 61.4 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि स्कूल की तरफ से उन्हें लर्निंग मेटेरियल नहीं मिला। 14 फीसदी अभिभावकों का कहना है कि उनके पास स्मार्टफोन नहीं है। 19.1 फीसदी के पास इन्टरनेट सुविधा नहीं हैं तो 3.3 फीसदी के पास कनेक्टिविटी नहीं है। जिस सप्ताह सर्वे हुआ उस दौरान 26.5 फीसदी सरकारी स्कूल के बच्चों ने कुछ नहीं सीखा। वहीं 29.5 फीसदी ने केवल एक एक्टिविटी सीखी। 23.1 फीसदी ने दो लर्निंग एक्टिविटी सीखी। निजी स्कूलों के करीब 30 फीसदी बच्चों ने कोई एक्टिविटी नहीं की। 22.2 फीसदी ने एक एक्टिविटी तथा 23 फीसदी ने दो एक्टिविटी व 24.8 फीसदी ने तीन या इससे अधिक एक्टिविटी की।
सर्वे ने खोल दी पोल
तमिलनाडु स्टूडेंट्स पैरेन्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. अरुमैनाथन कहते हैं, सर्वे ने ऑनलाइन कक्षा की हकीकत को उजागर कर दिया है। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकारी व निजी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के बीच किस कदर फासला है। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के पास बहुत कम सुविधाएं व संसाधन है। बड़ी संख्या में छात्र ऐसे हैं जो आर्थिक हालात के चलते स्मार्ट फोन खरीदने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में बच्चों को तनाव की तरफ धकेला है। स्कूल को एक्टिविटी आधारित पढ़ाई पर जोर देना चाहिए। जीवन कौशल व ज्ञान आधारित पाठ्यक्रम को बढ़ावा मिले। मौजूदा हालात में नियमित कक्षा से कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है।
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